वक़्त-बे-वक़्त बदलता मौसम
धूप की याद में जलता मौसम
कर रहा है जफ़ा ग़रीबों से
हाथ से रोज़ निकलता मौसम
है रवानी पसंद आंखों को
अश्क बन-बन के पिघलता मौसम
तिफ़्ले-नादान की तरह हमसे
रूठ जाता है संभलता मौसम
छोड़ बैठा बहार का दामन
रह गया हाथ मसलता मौसम
लड़खड़ा जाए ना कहीं ईमां
तेग़ की धार प' चलता मौसम
रोज़ बद्कार हुआ जाए है
शाह के रंग में ढलता मौसम !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अनीति, अन्याय; रवानी: गति; तिफ़्ले-नादान: अबोध शिशु; बहार: बसंत; दामन: आंचल;
ईमां: आस्था; तेग़: तलवार; बद्कार: कुकर्मी ।
धूप की याद में जलता मौसम
कर रहा है जफ़ा ग़रीबों से
हाथ से रोज़ निकलता मौसम
है रवानी पसंद आंखों को
अश्क बन-बन के पिघलता मौसम
तिफ़्ले-नादान की तरह हमसे
रूठ जाता है संभलता मौसम
छोड़ बैठा बहार का दामन
रह गया हाथ मसलता मौसम
लड़खड़ा जाए ना कहीं ईमां
तेग़ की धार प' चलता मौसम
रोज़ बद्कार हुआ जाए है
शाह के रंग में ढलता मौसम !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अनीति, अन्याय; रवानी: गति; तिफ़्ले-नादान: अबोध शिशु; बहार: बसंत; दामन: आंचल;
ईमां: आस्था; तेग़: तलवार; बद्कार: कुकर्मी ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें