नई तहज़ीब नामुमकिन, नए इक़्दार नामुमकिन
मुहब्बत का करें हम आपसे इज़्हार, नामुमकिन !
बहुत-से लोग हैं हमको जहां में फ़िक्र करने को
रहें अपने लिए हम रात-दिन बेज़ार, नामुमकिन
बुलाएं रोज़ उनको ख़्वाब में, लेकिन न आएंगे
हज़ारों कोशिशें ज़ाया, हज़ारों बार नामुमकिन
निभाना चाहते हैं जो, उन्हें मुश्किल नहीं होती
मगर हर दोस्त हो हर बात पर तैयार, नामुमकिन
ज़माने का चलन है बेगुनाहों को सज़ा देना
करें हम शाह से इंसाफ़ की दरकार, नामुमकिन
उठाए हैं मफ़ायद टूट कर सरमाएदारों से
ग़रीबों के लिए हो मुल्क की सरकार, नामुमकिन
सुना तो है बुज़ुर्गों से, ख़ुदा जल्वानुमा होगा
मजाज़ी तौर पर भी हो कभी दीदार, नामुमकिन !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तहज़ीब: सभ्यता; नामुमकिन: असंभव; इक़्दार: जीवन-मूल्य; इज़्हार: अभिव्यक्ति, प्रकट करना; जहां: संसार; बेज़ार: चिंतित, व्याकुल; ज़ाया: व्यर्थ; ज़माने: दुनिया; चलन: परंपरा; बेगुनाहों: निरपराधों; मफ़ायद: लाभ; सरमाएदारों: पूंजीपतियों; बुज़ुर्गों: बड़े-बूढ़ों; जल्वानुमा: प्रकट; मजाज़ी: दैहिक, सांसारिक; दीदार: दर्शन।
मुहब्बत का करें हम आपसे इज़्हार, नामुमकिन !
बहुत-से लोग हैं हमको जहां में फ़िक्र करने को
रहें अपने लिए हम रात-दिन बेज़ार, नामुमकिन
बुलाएं रोज़ उनको ख़्वाब में, लेकिन न आएंगे
हज़ारों कोशिशें ज़ाया, हज़ारों बार नामुमकिन
निभाना चाहते हैं जो, उन्हें मुश्किल नहीं होती
मगर हर दोस्त हो हर बात पर तैयार, नामुमकिन
ज़माने का चलन है बेगुनाहों को सज़ा देना
करें हम शाह से इंसाफ़ की दरकार, नामुमकिन
उठाए हैं मफ़ायद टूट कर सरमाएदारों से
ग़रीबों के लिए हो मुल्क की सरकार, नामुमकिन
सुना तो है बुज़ुर्गों से, ख़ुदा जल्वानुमा होगा
मजाज़ी तौर पर भी हो कभी दीदार, नामुमकिन !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तहज़ीब: सभ्यता; नामुमकिन: असंभव; इक़्दार: जीवन-मूल्य; इज़्हार: अभिव्यक्ति, प्रकट करना; जहां: संसार; बेज़ार: चिंतित, व्याकुल; ज़ाया: व्यर्थ; ज़माने: दुनिया; चलन: परंपरा; बेगुनाहों: निरपराधों; मफ़ायद: लाभ; सरमाएदारों: पूंजीपतियों; बुज़ुर्गों: बड़े-बूढ़ों; जल्वानुमा: प्रकट; मजाज़ी: दैहिक, सांसारिक; दीदार: दर्शन।
ऐसी बेहतरीन गजल पर आपकी तारीफ़ न करू.. नामुमकिन...
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