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सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

लौट आएंगी बहारें....


हुकूमत  का  बड़ा  एहसान  होगा
अगर  जीना  ज़रा  आसान  होगा

हमें जिस शख़्स का अरमान होगा
उसी  पर    आसमां   क़ुर्बान  होगा

अगर   ख़ामोश  रहता   है  दीवाना
कहीं  दिल  में  दबा  तूफ़ान  होगा

उसी  दिन   लौट  आएंगी  बहारें
कि तू जिस दिन मिरा मेहमान होगा

ग़ज़ब हैं हिंद के अह् ले सियासत
ख़ुदा  भी  देख  कर   हैरान  होगा

करेगा  शाह  की  जो  भी  हिमायत
निहायत  बदगुमां,  नादान   होगा

हमारे   आशियां  में  क्या  कमी  है
कि  अपना  ख़ुल्द  पर  ईमान होगा !

                                                        (2015)

                                              -सुरेश  स्वप्निल 

 शब्दार्थ :  हुकूमत: शासन; एहसान: अनुग्रह; शख़्स: व्यक्ति; अरमान: अभिलाषा; आसमां: आकाश, ईश्वर; क़ुर्बान: न्यौछावर; तूफ़ान: झंझावात; अह् ले सियासत: राजनैतिक, नेता गण; ग़ज़ब: विचित्र, आश्चर्यजनक; हिमायत: समर्थन; निहायत: अत्यंत;  बदगुमां: भ्रमित,  नादान: अबोध; आशियां: आवास; ख़ुल्द: स्वर्ग; ईमान: आस्था । 

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