रंगे-मौसम नया-नया सा है
मोजज़ा आज ही हुआ सा है
ये शुआएं उसी की नेमत हैं
ख़द्द जिसका ज़रा खुला सा है
आप फिर बेहिजाब आ निकले
चांद देखो, बुझा-बुझा सा है
हालते-दिल कहें, ग़ज़ल कह लें
हर्फ़-ब-हर्फ़ इक दुआ सा है
आप रातें तबाह मत कीजे
ख़्वाब मेरा वहीं छुपा सा है
आज मंज़िल निगाह में होगी
रास्ता बस, अभी मिला सा है
साज-सिंगार देखिए उसका
सोचता है कि वो ख़ुदा सा है
एक फ़र्ज़ी क़िला डुबा बैठा
शाह का सर झुका-झुका सा है
लोग ख़ाना-ख़राब कहते हैं
और दिल आप पर टिका सा है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रंगे-मौसम: ऋतु का रूप; मोजज़ा: चमत्कार; शुआएं: किरणें; नेमत: देन, कृपा; ख़द्द: मुख; बेहिजाब: निरावरण; हालते-दिल: मन की दशा; हर्फ़-ब-हर्फ़: एक-एक अक्षर,अक्षरशः; दुआ: प्रार्थना; फ़र्ज़ी: शतरंज की एक गोटी, वज़ीर, मंत्री; ख़ाना-ख़राब: यायावर ।
मोजज़ा आज ही हुआ सा है
ये शुआएं उसी की नेमत हैं
ख़द्द जिसका ज़रा खुला सा है
आप फिर बेहिजाब आ निकले
चांद देखो, बुझा-बुझा सा है
हालते-दिल कहें, ग़ज़ल कह लें
हर्फ़-ब-हर्फ़ इक दुआ सा है
आप रातें तबाह मत कीजे
ख़्वाब मेरा वहीं छुपा सा है
आज मंज़िल निगाह में होगी
रास्ता बस, अभी मिला सा है
साज-सिंगार देखिए उसका
सोचता है कि वो ख़ुदा सा है
एक फ़र्ज़ी क़िला डुबा बैठा
शाह का सर झुका-झुका सा है
लोग ख़ाना-ख़राब कहते हैं
और दिल आप पर टिका सा है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रंगे-मौसम: ऋतु का रूप; मोजज़ा: चमत्कार; शुआएं: किरणें; नेमत: देन, कृपा; ख़द्द: मुख; बेहिजाब: निरावरण; हालते-दिल: मन की दशा; हर्फ़-ब-हर्फ़: एक-एक अक्षर,अक्षरशः; दुआ: प्रार्थना; फ़र्ज़ी: शतरंज की एक गोटी, वज़ीर, मंत्री; ख़ाना-ख़राब: यायावर ।
बहुत खूबसूरत गजल है.. दिली मुबारकबाद..
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