चलो, आज दिल को ठिकाने लगा दें
किसी और बेहतर जगह पर बसा दें
नज़र के लिए तरबियत है ज़रूरी
इसे अब धड़कना, तड़पना सिखा दें
ज़ेह् न कह रहा है, मियां ! बख़्श भी दो
कहां तक तुम्हें ज़िंदगी की दुआ दें
जिगर है कि बस, डूबना चाहता है
न आएं, मगर कुछ मदावा बता दें
न हाथों में ताक़त, न पांवों में क़ुव्वत
क़लम से तो हम आसमां को झुका दें
हमें शाह से दुश्मनी तो नहीं है
मगर किस तरह से जरायम भुला दें ?
मिलेंगे किसी और दिन ज़िंदगी से
अभी मौत से एक वादा निभा दें !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तरबियत: संस्कार, शिक्षा; ज़ेह् न: मस्तिष्क; बख़्श: छोड़ना; जिगर: यकृत, साहस; मदावा: उपचार; ताक़त: शक्ति, क़ुव्वत: सामर्थ्य; क़लम: लेखनी; आसमां: आकाश, ईश्वर; ज़रायम: अपराध (बहुव.) ।
किसी और बेहतर जगह पर बसा दें
नज़र के लिए तरबियत है ज़रूरी
इसे अब धड़कना, तड़पना सिखा दें
ज़ेह् न कह रहा है, मियां ! बख़्श भी दो
कहां तक तुम्हें ज़िंदगी की दुआ दें
जिगर है कि बस, डूबना चाहता है
न आएं, मगर कुछ मदावा बता दें
न हाथों में ताक़त, न पांवों में क़ुव्वत
क़लम से तो हम आसमां को झुका दें
हमें शाह से दुश्मनी तो नहीं है
मगर किस तरह से जरायम भुला दें ?
मिलेंगे किसी और दिन ज़िंदगी से
अभी मौत से एक वादा निभा दें !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तरबियत: संस्कार, शिक्षा; ज़ेह् न: मस्तिष्क; बख़्श: छोड़ना; जिगर: यकृत, साहस; मदावा: उपचार; ताक़त: शक्ति, क़ुव्वत: सामर्थ्य; क़लम: लेखनी; आसमां: आकाश, ईश्वर; ज़रायम: अपराध (बहुव.) ।
वाह.. क्या कहने...
जवाब देंहटाएंन हाथों में ताक़त, न पांवों में क़ुव्वत
क़लम से तो हम आसमां को झुका दें