ढूंढिए, दिल यहीं कहीं होगा
आपसे दूर तो नहीं होगा
आ रही हैं शुआएं खिड़की से
माह होगा कि महजबीं होगा
घर जला कर हुज़ूर कहते हैं
अब तमाशा यहीं, यहीं होगा
क्या मुक़द्दस ख़्याल आया था
छोड़ आए जहां, वहीं होगा
हो जहां हर गुनाह शरियत से
कौन उस अर्श पर मकीं होगा
आ रहे हैं अभी, सुनो मूसा
मोजज़ा आज हर कहीं होगा
रोज़ रोज़ा-नमाज़ की ज़हमत
ज़ुल्म क्या ख़ुल्द में नहीं होगा ?
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शुआएं: किरणें; माह: चंद्रमा; महजबीं: चंद्रभाल, जिसका माथा चंद्रमा के समान उज्ज्वल हो; हुज़ूर: श्रीमान, मालिक;
मुक़द्दस ख़्याल: पवित्र विचार; गुनाह: अपराध; शरियत: धार्मिक क़ानून; अर्श: आकाश, स्वर्ग; मकीं: मकान में रहने वाला, निवासी;
मूसा: हज़रत मूसा अ.स., इस्लाम के द्वैत वादी दार्शनिक, पैग़ंबर, ख़ुदा की झलक पाने वाले एकमात्र मनुष्य; मोजज़ा: चमत्कार;
रोज़ा: उपवास; ज़ुल्म: अत्याचार; ख़ुल्द: स्वर्ग।
आपसे दूर तो नहीं होगा
आ रही हैं शुआएं खिड़की से
माह होगा कि महजबीं होगा
घर जला कर हुज़ूर कहते हैं
अब तमाशा यहीं, यहीं होगा
क्या मुक़द्दस ख़्याल आया था
छोड़ आए जहां, वहीं होगा
हो जहां हर गुनाह शरियत से
कौन उस अर्श पर मकीं होगा
आ रहे हैं अभी, सुनो मूसा
मोजज़ा आज हर कहीं होगा
रोज़ रोज़ा-नमाज़ की ज़हमत
ज़ुल्म क्या ख़ुल्द में नहीं होगा ?
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शुआएं: किरणें; माह: चंद्रमा; महजबीं: चंद्रभाल, जिसका माथा चंद्रमा के समान उज्ज्वल हो; हुज़ूर: श्रीमान, मालिक;
मुक़द्दस ख़्याल: पवित्र विचार; गुनाह: अपराध; शरियत: धार्मिक क़ानून; अर्श: आकाश, स्वर्ग; मकीं: मकान में रहने वाला, निवासी;
मूसा: हज़रत मूसा अ.स., इस्लाम के द्वैत वादी दार्शनिक, पैग़ंबर, ख़ुदा की झलक पाने वाले एकमात्र मनुष्य; मोजज़ा: चमत्कार;
रोज़ा: उपवास; ज़ुल्म: अत्याचार; ख़ुल्द: स्वर्ग।
बहुत खूब !
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