कहां औक़ात अपनी सोहबते-हज़रात पाने की
बुज़ुर्गों ने मनाही कर रखी है सर झुकाने की
हमारे साथ रहने के बहुत सारे मफ़ायद हैं
कि जैसे सीख लोगे तुम सियासत मुस्कुराने की
मुअम्मा है, समझ लोगे ज़रा-सा ज़र्फ़ आने पर
अभी से क्या पड़ी है शायरी में सर खपाने की
मरासिम तर्क कर दें या बढ़ाएं, आपकी मर्ज़ी
ज़रूरत क्या हमें इस उम्र में तोहमत उठाने की
हुदूदे-दोस्ती से दो क़दम आगे बढ़े हम भी
ज़रा ज़हमत उठाएं आप भी नज़दीक आने की
न जाने कौन है जो तूर से आवाज़ देता है
हमारी चाह भी है यूं किसी को मुंह दिखाने की
ज़मीं पर भेज कर हमको न यूं पछताइए, साहब
अभी कुछ और कोशिश कीजिए, हमको भुलाने की !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: औक़ात: सामर्थ्य; सोहबते-हज़रात: गणमान्य व्यक्तियों की संगति; बुज़ुर्गों: पूर्वजों; मफ़ायद: लाभ; सियासत: लोक-व्यवहार; मुअम्मा: पहेली; ज़र्फ़: गंभीरता; मरासिम: संबंध; तर्क: त्याग; तोहमत: कलंक; हुदूदे-दोस्ती: मित्रता की सीमाएं; ज़हमत: कष्ट;
तूर: मिस्र में एक मिथकीय पर्वत जहां हज़रत मूसा अ.स. को ईश्वर की झलक दिखाई दी थी; साहब: श्रीमान, यहां ख़ुदा ।
बुज़ुर्गों ने मनाही कर रखी है सर झुकाने की
हमारे साथ रहने के बहुत सारे मफ़ायद हैं
कि जैसे सीख लोगे तुम सियासत मुस्कुराने की
मुअम्मा है, समझ लोगे ज़रा-सा ज़र्फ़ आने पर
अभी से क्या पड़ी है शायरी में सर खपाने की
मरासिम तर्क कर दें या बढ़ाएं, आपकी मर्ज़ी
ज़रूरत क्या हमें इस उम्र में तोहमत उठाने की
हुदूदे-दोस्ती से दो क़दम आगे बढ़े हम भी
ज़रा ज़हमत उठाएं आप भी नज़दीक आने की
न जाने कौन है जो तूर से आवाज़ देता है
हमारी चाह भी है यूं किसी को मुंह दिखाने की
ज़मीं पर भेज कर हमको न यूं पछताइए, साहब
अभी कुछ और कोशिश कीजिए, हमको भुलाने की !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: औक़ात: सामर्थ्य; सोहबते-हज़रात: गणमान्य व्यक्तियों की संगति; बुज़ुर्गों: पूर्वजों; मफ़ायद: लाभ; सियासत: लोक-व्यवहार; मुअम्मा: पहेली; ज़र्फ़: गंभीरता; मरासिम: संबंध; तर्क: त्याग; तोहमत: कलंक; हुदूदे-दोस्ती: मित्रता की सीमाएं; ज़हमत: कष्ट;
तूर: मिस्र में एक मिथकीय पर्वत जहां हज़रत मूसा अ.स. को ईश्वर की झलक दिखाई दी थी; साहब: श्रीमान, यहां ख़ुदा ।
ज़मीं पर भेज कर हमको न यूं पछताइए, साहब
जवाब देंहटाएंअभी कुछ और कोशिश कीजिए, हमको भुलाने की !
Very Nice . Thanks