रहे ही कहां हम तुम्हारे ज़ेह् न में
न ख़ामोशियों में, न शे'रो-सुख़न में
नए ज़ाविए से पढ़ो तो किसी दिन
बहुत कुछ मिलेगा हमारी कहन में
बहारें गले यूं मिलीं दोस्तों से
हरारत बढ़ा दी शह् र के बदन में
फ़क़त नर्म जज़्बात की चांदनी है
शरारे नहीं हैं हमारी छुवन में
जिसे चाहिए, देनदारी चुका दे
ख़ुदा के यहां दिल पड़ा है रहन में
न साक़ी, न पैमां, न शैख़ो-मुअज़्ज़िन
कहां आ फंसे हम, ख़ुदा के वतन में !
ग़ज़ब की कशिश है, तुम्हारी अज़ां में
फ़रिश्ते उतर आए हैं अंजुमन में !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ेह् न: मस्तिष्क, विचार; शे'रो-सुख़न: शे'र/काव्य और सृजन; ज़ाविए: कोण; कहन: कथन-शैली; हरारत: ऊष्मा, तापमान;
बदन: शरीर; फ़क़त: मात्र; नर्म: कोमल; जज़्बात: भावनाएं; शरारे: चिंगारियां; छुवन: स्पर्श; देनदारी: ऋण; रहन: गिरवी; साक़ी: मदिरा देने वाला; पैमां: मदिरा-पात्र; शैख़ो-मुअज़्ज़िन: धर्मभीरु और अज़ान देने वाला; ग़ज़ब की: चमत्कारिक; कशिश: आकर्षण; फ़रिश्ते: देवदूत; अंजुमन: सभा।
न ख़ामोशियों में, न शे'रो-सुख़न में
नए ज़ाविए से पढ़ो तो किसी दिन
बहुत कुछ मिलेगा हमारी कहन में
बहारें गले यूं मिलीं दोस्तों से
हरारत बढ़ा दी शह् र के बदन में
फ़क़त नर्म जज़्बात की चांदनी है
शरारे नहीं हैं हमारी छुवन में
जिसे चाहिए, देनदारी चुका दे
ख़ुदा के यहां दिल पड़ा है रहन में
न साक़ी, न पैमां, न शैख़ो-मुअज़्ज़िन
कहां आ फंसे हम, ख़ुदा के वतन में !
ग़ज़ब की कशिश है, तुम्हारी अज़ां में
फ़रिश्ते उतर आए हैं अंजुमन में !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ेह् न: मस्तिष्क, विचार; शे'रो-सुख़न: शे'र/काव्य और सृजन; ज़ाविए: कोण; कहन: कथन-शैली; हरारत: ऊष्मा, तापमान;
बदन: शरीर; फ़क़त: मात्र; नर्म: कोमल; जज़्बात: भावनाएं; शरारे: चिंगारियां; छुवन: स्पर्श; देनदारी: ऋण; रहन: गिरवी; साक़ी: मदिरा देने वाला; पैमां: मदिरा-पात्र; शैख़ो-मुअज़्ज़िन: धर्मभीरु और अज़ान देने वाला; ग़ज़ब की: चमत्कारिक; कशिश: आकर्षण; फ़रिश्ते: देवदूत; अंजुमन: सभा।
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