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शनिवार, 9 अगस्त 2014

... ख़ुदा कहा जाए ?

दिल  दिया  जाए  या  लिया  जाए
मश्विरा  रूह  से  किया  जाए

दर्दे-दिल  है  कि  बस,  क़यामत  है
हिज्र  में  किस  तरह   सहा  जाए

और  कुछ  देर  खेलिए  दिल  से
और  कुछ  देर  जी  लिया  जाए

दिल  प'  निगरानियां  रहें   वरना
क्या  ख़बर,  कब  फ़रेब  खा  जाए

दाल-रोटी    जहां    नसीब    नहीं
किस   यक़ीं   पर  वहां  जिया  जाए

हो  चुकी  सैर   ख़ुल्द  की  काफ़ी
लौट  कर  आज  घर  चला  जाए

मोमिनों  का  जिसे  ख़्याल  न  हो
क्या  उसे  भी  ख़ुदा  कहा  जाए  ? 

                                                       (2014)

                                                -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: मश्विरा: परामर्श; रूह: आत्मा; क़यामत: प्रलय; निगरानियां: चौकसी; फ़रेब: छल; नसीब: उपलब्ध; यक़ीं: विश्वास;  ख़ुल्द: स्वर्ग; मोमिन: आस्था रखने वाले । 

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-08-2014) को "प्यार का बन्धन: रक्षाबन्धन" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1702 पर भी होगी।
    --
    भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक
    पावन रक्षाबन्धन पर्व की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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