जो न आया कभी बुलाने से
ख़्वाब वो आ गया बहाने से
इश्क़ का इम्तिहां नहीं देंगे
बाज़ आ जाएं आज़माने से
कौन है जो मिरे रक़ीबों को
रोकता है क़रीब आने से ?
रूह पर रहमतें बरसती हैं
रस्मे-राहे-वफ़ा निभाने से
दोस्त-एहबाब रूठ जाएंगे
बज़्म में आइना दिखाने से
हाथ से बात छूट जाती है
दर्द को मुद्द'आ बनाने से
नूर किरदार को नहीं मिलता
चांद पर तोहमतें लगाने से !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रक़ीबों: प्रिय व्यक्तियों (व्यंजना); रहमतें: ईश्वरीय कृपाएं; रस्मे-राहे-वफ़ा: निर्वाह के मार्ग की प्रथा; दोस्त-एहबाब: मित्र एवं प्रियजन; बज़्म: सभा, सार्वजनिक रूप से; मुद्द'आ: विवाद का विषय; नूर: प्रकाश; किरदार: व्यक्तित्व, चरित्र; तोहमतें: आरोप, दोष।
ख़्वाब वो आ गया बहाने से
इश्क़ का इम्तिहां नहीं देंगे
बाज़ आ जाएं आज़माने से
कौन है जो मिरे रक़ीबों को
रोकता है क़रीब आने से ?
रूह पर रहमतें बरसती हैं
रस्मे-राहे-वफ़ा निभाने से
दोस्त-एहबाब रूठ जाएंगे
बज़्म में आइना दिखाने से
हाथ से बात छूट जाती है
दर्द को मुद्द'आ बनाने से
नूर किरदार को नहीं मिलता
चांद पर तोहमतें लगाने से !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रक़ीबों: प्रिय व्यक्तियों (व्यंजना); रहमतें: ईश्वरीय कृपाएं; रस्मे-राहे-वफ़ा: निर्वाह के मार्ग की प्रथा; दोस्त-एहबाब: मित्र एवं प्रियजन; बज़्म: सभा, सार्वजनिक रूप से; मुद्द'आ: विवाद का विषय; नूर: प्रकाश; किरदार: व्यक्तित्व, चरित्र; तोहमतें: आरोप, दोष।
सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं