'साझा आसमान' की 400वीं ग़ज़ल
हमें तूफ़ाने-ग़म से पार पाना ख़ूब आता है
नज़र के वार से दामन बचाना ख़ूब आता है
तजुर्बा है हमें आधी सदी से जो बग़ावत का
सितमगर के इरादों को हराना ख़ूब आता है
जिन्हें आया नहीं अब तक सलीक़ा मुस्कुराने का
उन्हें बिन बात के आंसू बहाना ख़ूब आता है
ख़ुदा क़ायम रखे उन दोस्तों की बे-हयाई को
जिन्हें वक़्ते-ज़रूरत मुंह छुपाना ख़ूब आता है
किसी के ज़ख्म पर मरहम लगाना भी कभी सीखो
तुम्हें बस दोस्तों के दिल जलाना ख़ूब आता है
सियासत ने हमेशा से उन्हीं को अज़्म बख़्शा है
जिन्हें अपने सभी वादे भुलाना ख़ूब आता है
फ़रेबो-मक्र से ऊंचाइयों पर बैठने वालों
अवामे-हिंद को नीचे गिराना ख़ूब आता है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तूफ़ाने-ग़म: दुःख का झंझावात; दामन:हृदय; तजुर्बा: अनुभव; बग़ावत: विद्रोह; सितमगर: अत्याचारी; सलीक़ा: ढंग;
क़ायम: शाश्वत, स्थायी; बे-हयाई: निर्लज्जता; वक़्ते-ज़रूरत: आवश्यकता के समय; ज़ख्म: घाव; अज़्म बख़्शा: महानता/प्रमुखता दी; फ़रेबो-मक्र: छल-कपट; अवामे-हिंद: भारतीय जन ।
हमें तूफ़ाने-ग़म से पार पाना ख़ूब आता है
नज़र के वार से दामन बचाना ख़ूब आता है
तजुर्बा है हमें आधी सदी से जो बग़ावत का
सितमगर के इरादों को हराना ख़ूब आता है
जिन्हें आया नहीं अब तक सलीक़ा मुस्कुराने का
उन्हें बिन बात के आंसू बहाना ख़ूब आता है
ख़ुदा क़ायम रखे उन दोस्तों की बे-हयाई को
जिन्हें वक़्ते-ज़रूरत मुंह छुपाना ख़ूब आता है
किसी के ज़ख्म पर मरहम लगाना भी कभी सीखो
तुम्हें बस दोस्तों के दिल जलाना ख़ूब आता है
सियासत ने हमेशा से उन्हीं को अज़्म बख़्शा है
जिन्हें अपने सभी वादे भुलाना ख़ूब आता है
फ़रेबो-मक्र से ऊंचाइयों पर बैठने वालों
अवामे-हिंद को नीचे गिराना ख़ूब आता है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तूफ़ाने-ग़म: दुःख का झंझावात; दामन:हृदय; तजुर्बा: अनुभव; बग़ावत: विद्रोह; सितमगर: अत्याचारी; सलीक़ा: ढंग;
क़ायम: शाश्वत, स्थायी; बे-हयाई: निर्लज्जता; वक़्ते-ज़रूरत: आवश्यकता के समय; ज़ख्म: घाव; अज़्म बख़्शा: महानता/प्रमुखता दी; फ़रेबो-मक्र: छल-कपट; अवामे-हिंद: भारतीय जन ।
बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंरक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
वाह बेहद सुंदर।
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