रूठ कर क्या कमाल कर लेंगे
आप जीना मुहाल कर लेंगे
आज नज़रों से बात करते हैं
फिर कभी बोलचाल कर लेंगे
लोग बैठे रहें अना ले कर
हर ख़ुशी को मलाल कर लेंगे
तीरगी की हमें नहीं परवा:
दिल जला कर मशाल कर लेंगे
जी रहे हैं अगर अक़ीदत पर
आख़िरत तक कमाल कर लेंगे
ईद पर तो गले लगा लेते
लोग कितने सवाल कर लेंगे
ख़ुल्द में भी ख़ुदा न पाया तो
हम तुम्हारा ख़याल कर लेंगे !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुहाल: कठिन; अना: अहंकार; मलाल: खेद; तीरगी: अंधकार; अक़ीदत: आस्था; आख़िरत: अंत समय; ख़ुल्द: स्वर्ग ।
आप जीना मुहाल कर लेंगे
आज नज़रों से बात करते हैं
फिर कभी बोलचाल कर लेंगे
लोग बैठे रहें अना ले कर
हर ख़ुशी को मलाल कर लेंगे
तीरगी की हमें नहीं परवा:
दिल जला कर मशाल कर लेंगे
जी रहे हैं अगर अक़ीदत पर
आख़िरत तक कमाल कर लेंगे
ईद पर तो गले लगा लेते
लोग कितने सवाल कर लेंगे
ख़ुल्द में भी ख़ुदा न पाया तो
हम तुम्हारा ख़याल कर लेंगे !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुहाल: कठिन; अना: अहंकार; मलाल: खेद; तीरगी: अंधकार; अक़ीदत: आस्था; आख़िरत: अंत समय; ख़ुल्द: स्वर्ग ।
वाह.... बहुत ही उम्दा पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंवाह। बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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