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गुरुवार, 17 जुलाई 2014

संगदिल का नाम...

ज़िंदगी  में  आज  भी  कुछ  ख़ास  है
सब्र  लेकिन  क्या  हमारे  पास  है  ?

ख़ुश  नहीं  हैं  आप  हमसे  रूठ  कर
जी,  हमें  इस  दर्द  का  एहसास  है

तोड़  कर  दिल  पढ़  रहा  है  मरसिया
देखिए,  वो  किस  क़दर  हस्सास  है  !

तख़्त  पर  बैठा  हुआ  जो  शख़्स  है
सीरतो - तासीर  से  ख़ुन्नास  है  !

ख़ुश्क  हैं  लब   ग़ुंच:-ओ-गुल  के  मगर
क्या  बहारों  को  वफ़ा  का  पास  है  ?

तू  नहीं  तो  याद  ही  तेरी  सही 
शुक्र  है,  कुछ  तो  हमारे  पास  है  !

क्या  कहें  उस  हुस्ने-जानां  की  अदा
संगदिल  का  नाम  तक  अलमास  है !

                                                           (2014)

                                                  -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: सब्र: धैर्य; एहसास: भान, प्रतीति; मरसिया: शोक-गीत; हस्सास: संवेदनशील; सीरतो - तासीर: प्रकृति और गुण; 
ख़ुन्नास: दुष्टात्मा; ख़ुश्क: शुष्क; लब: ओष्ठ; ग़ुंच:-ओ-गुल: कली और फूल; वफ़ा: निर्वाह; पास: ध्यान; हुस्ने-जानां: प्रियतम का सौंदर्य; संगदिल: पाषाण-हृदय; अलमास: हीरा । 

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