फूलों से वास्ता न चमन से, बहार से
फिर ज़िक्रे-हुस्न कीजिए किस एतबार से ?
यूं तो हमें यक़ीं है तिरी ज़ात पर मगर
तस्दीक़ ज़रूरी है किसी राज़दार से
सज्दा करें, सलाम करें या दुआ करें
क्या चाहते हैं आप दिले-बेक़रार से ?
वो आज शहंशाह सही, हम भी क्या करें
होता नहीं है इश्क़ हमें ताजदार से !
सज्दे में हम हों और वो पर्दे में जा रहें
ऐसा सुलूक ठीक नहीं दोस्त यार से !
अल्लाह से कहें कि कहें आईने से हम
उम्मीद नहीं और किसी ग़म-गुसार से
आएंगे, तिरी ख़ुल्द भी देखेंगे किसी दिन
फ़ुर्सत कभी मिले जो ग़मे-रोज़गार से !
(2014)
फिर ज़िक्रे-हुस्न कीजिए किस एतबार से ?
यूं तो हमें यक़ीं है तिरी ज़ात पर मगर
तस्दीक़ ज़रूरी है किसी राज़दार से
सज्दा करें, सलाम करें या दुआ करें
क्या चाहते हैं आप दिले-बेक़रार से ?
वो आज शहंशाह सही, हम भी क्या करें
होता नहीं है इश्क़ हमें ताजदार से !
सज्दे में हम हों और वो पर्दे में जा रहें
ऐसा सुलूक ठीक नहीं दोस्त यार से !
अल्लाह से कहें कि कहें आईने से हम
उम्मीद नहीं और किसी ग़म-गुसार से
आएंगे, तिरी ख़ुल्द भी देखेंगे किसी दिन
फ़ुर्सत कभी मिले जो ग़मे-रोज़गार से !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़िक्रे-हुस्न: सौंदर्य-चर्चा; एतबार: विश्वास; ज़ात: अस्तित्व, व्यक्तित्व; तस्दीक़: पुष्टि; राज़दार: रहस्य जानने वाला, मर्मज्ञ;
सज्दा: प्रणिपात; दिले-बेक़रार: विकल-मन व्यक्ति; ताजदार: मुकुट-धारी; ख़ुल्द: जन्नत, स्वर्ग; सुलूक: व्यवहार; दोस्त यार: निकट मित्र ग़म-गुसार: दुःख समझने वाला; ग़मे-रोज़गार: आजीविका/ जीवन जीने का दुःख।
सज्दा करें, सलाम करें या दुआ करें
जवाब देंहटाएंक्या चाहते हैं आप दिले-बेक़रार से ?
बढ़िया
बेहद उम्दा ग़ज़ल...
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