हमें भूल जाना ज़रूरी नहीं है
बहाने बनाना ज़रूरी नहीं है
यक़ीं है हमें आशिक़ी पर हमारी
उन्हें आज़माना ज़रूरी नहीं है
न चाहें तो न आएं दिल में हमारे
मगर दूर जाना ज़रूरी नहीं है
तजुर्बा नया भी ज़रूरी है यूं तो
नई चोट खाना ज़रूरी नहीं है
दग़ाबाज़ से दिल लगाना बुरा है
नज़र से गिराना ज़रूरी नहीं है
वही कीजिए जो लगे ठीक दिल को
ग़लत हो ज़माना ज़रूरी नहीं है
किसी से कभी मत कहो दर्द अपना
ख़ुदा से छुपाना ज़रूरी नहीं है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: यक़ीं: विश्वास; आशिक़ी: प्रेम; तजुर्बा:प्रयोग, अनुभव; दग़ाबाज़: छल करने वाला।
बहाने बनाना ज़रूरी नहीं है
यक़ीं है हमें आशिक़ी पर हमारी
उन्हें आज़माना ज़रूरी नहीं है
न चाहें तो न आएं दिल में हमारे
मगर दूर जाना ज़रूरी नहीं है
तजुर्बा नया भी ज़रूरी है यूं तो
नई चोट खाना ज़रूरी नहीं है
दग़ाबाज़ से दिल लगाना बुरा है
नज़र से गिराना ज़रूरी नहीं है
वही कीजिए जो लगे ठीक दिल को
ग़लत हो ज़माना ज़रूरी नहीं है
किसी से कभी मत कहो दर्द अपना
ख़ुदा से छुपाना ज़रूरी नहीं है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: यक़ीं: विश्वास; आशिक़ी: प्रेम; तजुर्बा:प्रयोग, अनुभव; दग़ाबाज़: छल करने वाला।
कल 20/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंकिसी से कभी मत कहो दर्द अपना
जवाब देंहटाएंख़ुदा से छुपाना ज़रूरी नहीं है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति