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शुक्रवार, 2 मई 2014

दोस्त तंगहाल रहे !

मेरे  क़रीब  से  गुज़रो  तो  ये:  ख़्याल  रहे
मेरे  असर  का  कहीं  दिल  में  न  मलाल  रहे

हमें  नज़र  में  बसाएं  तो  ये:  समझ  लीजे
कि  हम  जहां  रहे  वहां  हज़ार  साल  रहे

ख़ुदा  बचाए  हमें  इश्क़  की   नियामत  से
जिगर  में  दर्द  रहे,   ज़ेहन   में  सवाल  रहे

जो  एक  बार   चढ़  गए   तेरी  निगाहों  में
तेरी  नज़र  में  वही  सिर्फ़  बा-कमाल  रहे

ख़ुदा  भी  माफ़  न  कर  पाएगा  तुझे  शायद
जला  के  बस्तियां  अगर  तेरा  जलाल  रहे

तमाम  वक़्त  निभाया  किए  अना  तेरी  
तमाम  उम्र    तेरे  दोस्त     तंगहाल  रहे  

निभा   न  पाए  हम  पाबंदिए-नमाज़  कभी
तेरे  करम  के  मगर  सिलसिले  बहाल  रहे  !

                                                                    ( 2014 ) 

                                                            -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: मलाल: खेद; नियामत: देन, कृपा; जिगर: हृदय-क्षेत्र; ज़ेहन: मस्तिष्क; बा-कमाल: काम के लोग, सुयोग्य;   जलाल: प्रताप; 
अना: गर्व; पाबंदिए-नमाज़: नमाज़ की नियमबद्धता; करम: कृपा; सिलसिले: क्रम; बहाल: यथावत ।




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