आज खुल कर जिरह कीजिए
दोस्ती की सुब्ह कीजिए
एक रंगे - इबादत है ये:
इश्क़ अच्छी तरह कीजिए
पास आना ज़रूरी नहीं
दूर से तो निगह कीजिए
कब तलक मुंतज़िर हम रहें
आप दिल में जगह कीजिए
दुश्मनी से किसे - क्या मिला
छोड़िए ज़िद, सुलह कीजिए
ज़िंदगी में ख़ुशी के लिए
बेकसी को फ़तह कीजिए
शौक़ है आपको क़त्ल का
झुक गए हम, ज़िब्ह कीजिए !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जिरह: तर्क-वितर्क; रंगे - इबादत: पूजा का ढंग; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; सुलह: समझौता;
बेकसी: विवशता; फ़तह: विजय; क़त्ल: हत्या; ज़िब्ह:गला काटना ।
दोस्ती की सुब्ह कीजिए
एक रंगे - इबादत है ये:
इश्क़ अच्छी तरह कीजिए
पास आना ज़रूरी नहीं
दूर से तो निगह कीजिए
कब तलक मुंतज़िर हम रहें
आप दिल में जगह कीजिए
दुश्मनी से किसे - क्या मिला
छोड़िए ज़िद, सुलह कीजिए
ज़िंदगी में ख़ुशी के लिए
बेकसी को फ़तह कीजिए
शौक़ है आपको क़त्ल का
झुक गए हम, ज़िब्ह कीजिए !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जिरह: तर्क-वितर्क; रंगे - इबादत: पूजा का ढंग; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; सुलह: समझौता;
बेकसी: विवशता; फ़तह: विजय; क़त्ल: हत्या; ज़िब्ह:गला काटना ।
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