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गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

जल्व: - ए - बहार

दिल  से  तक़दीर  की  तकरार  अभी  जारी  है
रंज़िशे - ख्वाहिशो - क़रार       अभी  जारी  है

हमपे   मेहमान   चंद  रोज़   इनायत   न  करें
तलाशे - रिज़्क़ो - रोज़गार      अभी  जारी  है

फ़रेबो-मक्र   की    फ़ेहरिस्त    बनाते  चलिए
इंतेख़ाबात    का    बाज़ार        अभी  जारी  है

गुज़र  रही  है    शबे-हिज्र    सख़्त   दोनों  पर
कि  नफ़्स-नफ़्स   का   शुमार  अभी  जारी  है

कभी   तो   राहे - रास्त   से      क़रीब  आएंगे
रक़ीबे - जां   पे      ऐतबार    अभी  जारी  है

कमी   हुई   है   अर्श   पर   हसीन   चेहरों  की 
ज़मीं  पे    जल्व: - ए - बहार   अभी  जारी  है

झुके  हुए  हैं    तिरे  दर  पे     माहे-रमज़ां   से  
नवाज़िशों     का    इंतज़ार    अभी   जारी   है !

                                                                         ( 2014 )

                                                                  -सुरेश  स्वप्निल  

शब्दार्थ: तकरार: वाद-विवाद; रंज़िशे - ख्वाहिशो - क़रार: इच्छाओं और संतुष्टि में मन-मुटाव; चंद: चार; इनायत: कृपा;  
तलाशे - रिज़्क़ो - रोज़गार: दो समय का आहार और व्यवसाय की खोज; फ़रेबो-मक्र: छल और पाखंड;  फ़ेहरिस्त: सूची;
इंतेख़ाबात: चुनावों; शबे-हिज्र: वियोग की निशा;  नफ़्स-नफ़्स: सांस-सांस; शुमार: गिनती; राहे - रास्त: उचित मार्ग; 
रक़ीबे - जां: प्राण-शत्रु;  ऐतबार: विश्वास; अर्श: आकाश;  जल्व: - ए - बहार: बसंत के दृश्य;  दर: द्वार;  माहे-रमज़ां: रमज़ान का मास; नवाज़िशों: ईश्वरीय देन ।                                          

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