न दिल पर बात लेते औ' न ख़ुद का फ़ातिहा पढ़ते
सियासत में लगे रहते, जफ़ा करते, नफ़ा पढ़ते
न होता दर्द सीने में किसी की ग़मगुसारी से
बहाते अश्क आंखों से, ज़ेह्न में फ़ायदा पढ़ते
तिजारत के लिए हममें हज़ारों ख़ूबियां होतीं
सुख़न के नाम पर सरमाएदारों का कहा पढ़ते
बिना रिश्वत लिए करते न कोई काम दुनिया का
न का'बे की ख़बर रखते, न मस्जिद का पता पढ़ते
तुम्हीं को शौक़ क्या है, इश्क़ में क़ुर्बान होने का
कि औरों की तरह तुम भी रक़म का क़ायदा पढ़ते
हमारी शख़्सियत को आप समझेंगे भला कैसे
लगन होती तो ग़ालिब से हमारा सिलसिला पढ़ते
चले हैं अर्श की जानिब, वफ़ाए-दुश्मनां ले कर
हमारे वास्ते ऐ काश ! वो: भी इक दुआ पढ़ते !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ातिहा: मृतक के सम्मान में पढ़ी जाने वाली प्रार्थना; जफ़ा:छल; नफ़ा: लाभ (का गणित); ग़मगुसारी: दु:ख समझना;
ज़ेह्न: मस्तिष्क; तिजारत: व्यापार; सुख़न: साहित्य; सरमाएदारों: पूंजीपतियों; का'बा: ईश्वर की उपस्थिति का प्रतीक, मुस्लिमों का तीर्थ-स्थान; क़ुर्बान: बलिदान; रक़म का क़ायदा: धन/कमाई का सिद्धांत; शख़्सियत: व्यक्तित्व; ग़ालिब: हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महानतम शायर; सिलसिला: आनुवंशिक संबंध; अर्श: आकाश; जानिब: ओर; वफ़ाए-दुश्मनां: शत्रुओं की आस्थाएं ।
सियासत में लगे रहते, जफ़ा करते, नफ़ा पढ़ते
न होता दर्द सीने में किसी की ग़मगुसारी से
बहाते अश्क आंखों से, ज़ेह्न में फ़ायदा पढ़ते
तिजारत के लिए हममें हज़ारों ख़ूबियां होतीं
सुख़न के नाम पर सरमाएदारों का कहा पढ़ते
बिना रिश्वत लिए करते न कोई काम दुनिया का
न का'बे की ख़बर रखते, न मस्जिद का पता पढ़ते
तुम्हीं को शौक़ क्या है, इश्क़ में क़ुर्बान होने का
कि औरों की तरह तुम भी रक़म का क़ायदा पढ़ते
हमारी शख़्सियत को आप समझेंगे भला कैसे
लगन होती तो ग़ालिब से हमारा सिलसिला पढ़ते
चले हैं अर्श की जानिब, वफ़ाए-दुश्मनां ले कर
हमारे वास्ते ऐ काश ! वो: भी इक दुआ पढ़ते !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ातिहा: मृतक के सम्मान में पढ़ी जाने वाली प्रार्थना; जफ़ा:छल; नफ़ा: लाभ (का गणित); ग़मगुसारी: दु:ख समझना;
ज़ेह्न: मस्तिष्क; तिजारत: व्यापार; सुख़न: साहित्य; सरमाएदारों: पूंजीपतियों; का'बा: ईश्वर की उपस्थिति का प्रतीक, मुस्लिमों का तीर्थ-स्थान; क़ुर्बान: बलिदान; रक़म का क़ायदा: धन/कमाई का सिद्धांत; शख़्सियत: व्यक्तित्व; ग़ालिब: हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महानतम शायर; सिलसिला: आनुवंशिक संबंध; अर्श: आकाश; जानिब: ओर; वफ़ाए-दुश्मनां: शत्रुओं की आस्थाएं ।
एक ज़माने बाद मेरे दिल को छु कर ये गज़ल निकल गई,,,हालते हजरा का इज़हार,इससे बेहतर ओर क्या ???दिल कि कैफियत ,,,वाह वाह
जवाब देंहटाएंन दिल पर बात लेते औ' न ख़ुद का फ़ातिहा पढ़ते
सियासत में लगे रहते, जफ़ा करते, नफ़ा पढ़ते
स्वप्निल जी, कमाल की ग़ज़ल है।
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