फूल मत देना हमें सौग़ात में
खिल न पाएंगे नए हालात में
कह न पाएंगे किसी से राज़े-दिल
क्या मिलेगा वस्ल की इस रात में
तुम सियासतदां समझते क्यूं नहीं
बह रहे हैं लोग किन जज़्बात में
असलहों की है हुकूमत आजकल
बंट रही हैं गोलियां ख़ैरात में
क्यूं ख़ुदा से मांगता है रोटियां
क्या कमी है आदमी की ज़ात में
सिलसिला जब से ख़ुदा से कर लिया
तर-ब-तर हैं नूर की बरसात में
कौन कहता है कि हम बेताब हैं
बस ज़रा सी हड़बड़ी है बात में !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
....
खिल न पाएंगे नए हालात में
कह न पाएंगे किसी से राज़े-दिल
क्या मिलेगा वस्ल की इस रात में
तुम सियासतदां समझते क्यूं नहीं
बह रहे हैं लोग किन जज़्बात में
असलहों की है हुकूमत आजकल
बंट रही हैं गोलियां ख़ैरात में
क्यूं ख़ुदा से मांगता है रोटियां
क्या कमी है आदमी की ज़ात में
सिलसिला जब से ख़ुदा से कर लिया
तर-ब-तर हैं नूर की बरसात में
कौन कहता है कि हम बेताब हैं
बस ज़रा सी हड़बड़ी है बात में !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
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