कह चुके, अब रुख़्सती का वक़्त है
जश्न हो जाए, ख़ुशी का वक़्त है
अश्कबारी भूल कर हंस दीजिए
ये: गुलों में ताज़गी का वक़्त है
इंतेख़ाबे-आम इस जम्हूर का
रहबरों की रहज़नी का वक़्त है
शाहे-ग़ाफ़िल, होश में आ जा ज़रा
ज़ालिमों की ख़ुदकुशी का वक़्त है
ऐ फ़रिश्तों ! बख़्श दो कुछ देर को
रिंद हैं, बाद:कशी का वक़्त है
मैकदे की लाज रखियो, ज़ाहिदों !
चल दिए हम, बंदगी का वक़्त है
मौत कहिए जिस्म की या यूं कहें
रूह की आवारगी का वक़्त है !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रुख़्सती: बिदाई; जश्न: उत्सव; अश्कबारी: अश्रु-प्रवाह; इंतेख़ाबे-आम: आम चुनाव; जम्हूर: लोकतंत्र; रहबरों की रहज़नी: नेताओं की बीच रास्ते में लूटमार; शाहे-ग़ाफ़िल: भ्रम में पड़े लोगों का राजा; ज़ालिमों: अत्याचारियों; ख़ुदकुशी: आत्महत्या; फ़रिश्तों: मृत्यु-दूतों; बख़्श दो: छोड़ दो; रिंद: मद्यप; बाद:कशी: मदिरा-पान; मैकदे: मदिरालय; ज़ाहिदों: धर्मोपदेशकों; रूह की आवारगी: आत्मा की यायावरी।
जश्न हो जाए, ख़ुशी का वक़्त है
अश्कबारी भूल कर हंस दीजिए
ये: गुलों में ताज़गी का वक़्त है
इंतेख़ाबे-आम इस जम्हूर का
रहबरों की रहज़नी का वक़्त है
शाहे-ग़ाफ़िल, होश में आ जा ज़रा
ज़ालिमों की ख़ुदकुशी का वक़्त है
ऐ फ़रिश्तों ! बख़्श दो कुछ देर को
रिंद हैं, बाद:कशी का वक़्त है
मैकदे की लाज रखियो, ज़ाहिदों !
चल दिए हम, बंदगी का वक़्त है
मौत कहिए जिस्म की या यूं कहें
रूह की आवारगी का वक़्त है !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रुख़्सती: बिदाई; जश्न: उत्सव; अश्कबारी: अश्रु-प्रवाह; इंतेख़ाबे-आम: आम चुनाव; जम्हूर: लोकतंत्र; रहबरों की रहज़नी: नेताओं की बीच रास्ते में लूटमार; शाहे-ग़ाफ़िल: भ्रम में पड़े लोगों का राजा; ज़ालिमों: अत्याचारियों; ख़ुदकुशी: आत्महत्या; फ़रिश्तों: मृत्यु-दूतों; बख़्श दो: छोड़ दो; रिंद: मद्यप; बाद:कशी: मदिरा-पान; मैकदे: मदिरालय; ज़ाहिदों: धर्मोपदेशकों; रूह की आवारगी: आत्मा की यायावरी।
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