हम जो जागे रात-रात भर, हमको कोई काम न था
तुम क्यूं दीवाने हो बैठे, तुमको क्यूं आराम न था ?
आज हमारे घर के आगे, दीवानों का मजमा है
कल तक तेरे यार न थे तो दिल इतना बदनाम न था
बढ़ते ही जाते हैं दिन पर दिन हम पर हंसने वाले
था दीवानापन हममें पहले भी , सुब्हो-शाम न था
लोग हमारे दर पर आ कर नाहक़ सज्दा करते हैं
अपने तो सारे शजरे में कोई रहीमो-राम न था
दुनिया में इससे पहले भी तानाशाह कई आए
मज़हब के मुद्दे पर लेकिन ऐसा क़त्ले-आम न था
जब हम चौराहे पर ला कर सूली पर लटकाए गए
सच कहने के सिवा हमारे ऊपर कुछ इल्ज़ाम न था
कहते हैं कल रात फ़रिश्ते हमको लेने आए थे
लेकिन उनके पास हमें ले जाने को पैग़ाम न था !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मजमा: भीड़; दर: द्वार; नाहक़: व्यर्थ, अकारण; सज्दा: ढोक देना, सिर झुका कर प्रणाम करना; शजरे में: वंशवृक्ष में;
रहीमो-राम: रहीम या अल्लाह और राम; मज़हब: धर्म; मुद्दे: प्रश्न, विषय; क़त्ले-आम: जन -संहार; इल्ज़ाम: आरोप; फ़रिश्ते: मृत्युदूत; पैग़ाम: सन्देश।
तुम क्यूं दीवाने हो बैठे, तुमको क्यूं आराम न था ?
आज हमारे घर के आगे, दीवानों का मजमा है
कल तक तेरे यार न थे तो दिल इतना बदनाम न था
बढ़ते ही जाते हैं दिन पर दिन हम पर हंसने वाले
था दीवानापन हममें पहले भी , सुब्हो-शाम न था
लोग हमारे दर पर आ कर नाहक़ सज्दा करते हैं
अपने तो सारे शजरे में कोई रहीमो-राम न था
दुनिया में इससे पहले भी तानाशाह कई आए
मज़हब के मुद्दे पर लेकिन ऐसा क़त्ले-आम न था
जब हम चौराहे पर ला कर सूली पर लटकाए गए
सच कहने के सिवा हमारे ऊपर कुछ इल्ज़ाम न था
कहते हैं कल रात फ़रिश्ते हमको लेने आए थे
लेकिन उनके पास हमें ले जाने को पैग़ाम न था !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मजमा: भीड़; दर: द्वार; नाहक़: व्यर्थ, अकारण; सज्दा: ढोक देना, सिर झुका कर प्रणाम करना; शजरे में: वंशवृक्ष में;
रहीमो-राम: रहीम या अल्लाह और राम; मज़हब: धर्म; मुद्दे: प्रश्न, विषय; क़त्ले-आम: जन -संहार; इल्ज़ाम: आरोप; फ़रिश्ते: मृत्युदूत; पैग़ाम: सन्देश।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें