रहे जो तलाशे-शराब में उन्हें तिश्नगी ने मिटा दिया
कभी जाम ने, कभी ख़ुम्र ने, कभी मांदगी ने मिटा दिया
मेरी बेख़ुदी का कमाल था के: तेरे क़रीब बिठा दिया
तेरी सोहबतों ने सुकूं दिया, तेरी सादगी ने मिटा दिया
तू कहे तो अब तेरी बज़्म का, कभी भूल कर भी न मैं नाम लूं
जो हमारे बीच थी रौशनी, उसे तीरगी ने मिटा दिया
ये: अजब-सा जश्ने-बहार है, जहां तितलियों की पहुंच नहीं
के: चमन के रस्मो-रिवाज को किसी बदज़नी ने मिटा दिया
कभी हम भी थे तेरे आशना, तेरे हमसफ़र, तेरे हमनवा
रहीं अब कहां वो: नवाज़िशें, उन्हें ज़िंदगी ने मिटा दिया
कहीं कुछ ख़ता तो ज़रूर है, के: तेरी निगाह बदल गई
तेरे ज़ेह्न से मेरा नाम भी, किसी अजनबी ने मिटा दिया
रहे सर-ब-सज्द: अज़ल तलक, के: कहां-कहां रहे ढ़ूंढते
न ख़ुदा मिला न कोई ख़बर, हमें बंदगी ने मिटा दिया !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तिश्नगी: प्यास; जाम: मदिरा-पात्र; ख़ुम्र: मदिरा; मांदगी: शिथिलता, थकान; बेख़ुदी: आत्म-विस्मृति;सोहबतें: साथ, संग;
सुकूं: संतोष; बज़्म: सभा, गोष्ठी; तीरगी: अंधकार; जश्ने-बहार: बसंतोत्सव; चमन: उपवन; रस्मो-रिवाज: प्रथा-परंपराएं; बदज़नी: कुकृत्य; आशना: साथी; हमसफ़र: सहयात्री; हमनवा: सहमत, हां में हां मिलाने वाला; नवाज़िशें: देन, उपहार,कृपाएं; ख़ता: दोष, अपराध;
ज़ेह्न : मस्तिष्क, स्मृति; अजनबी: अपरिचित; सर-ब-सज्द: : साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में; अज़ल: मृत्यु; तलक: तक।
कभी जाम ने, कभी ख़ुम्र ने, कभी मांदगी ने मिटा दिया
मेरी बेख़ुदी का कमाल था के: तेरे क़रीब बिठा दिया
तेरी सोहबतों ने सुकूं दिया, तेरी सादगी ने मिटा दिया
तू कहे तो अब तेरी बज़्म का, कभी भूल कर भी न मैं नाम लूं
जो हमारे बीच थी रौशनी, उसे तीरगी ने मिटा दिया
ये: अजब-सा जश्ने-बहार है, जहां तितलियों की पहुंच नहीं
के: चमन के रस्मो-रिवाज को किसी बदज़नी ने मिटा दिया
कभी हम भी थे तेरे आशना, तेरे हमसफ़र, तेरे हमनवा
रहीं अब कहां वो: नवाज़िशें, उन्हें ज़िंदगी ने मिटा दिया
कहीं कुछ ख़ता तो ज़रूर है, के: तेरी निगाह बदल गई
तेरे ज़ेह्न से मेरा नाम भी, किसी अजनबी ने मिटा दिया
रहे सर-ब-सज्द: अज़ल तलक, के: कहां-कहां रहे ढ़ूंढते
न ख़ुदा मिला न कोई ख़बर, हमें बंदगी ने मिटा दिया !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तिश्नगी: प्यास; जाम: मदिरा-पात्र; ख़ुम्र: मदिरा; मांदगी: शिथिलता, थकान; बेख़ुदी: आत्म-विस्मृति;सोहबतें: साथ, संग;
सुकूं: संतोष; बज़्म: सभा, गोष्ठी; तीरगी: अंधकार; जश्ने-बहार: बसंतोत्सव; चमन: उपवन; रस्मो-रिवाज: प्रथा-परंपराएं; बदज़नी: कुकृत्य; आशना: साथी; हमसफ़र: सहयात्री; हमनवा: सहमत, हां में हां मिलाने वाला; नवाज़िशें: देन, उपहार,कृपाएं; ख़ता: दोष, अपराध;
ज़ेह्न : मस्तिष्क, स्मृति; अजनबी: अपरिचित; सर-ब-सज्द: : साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में; अज़ल: मृत्यु; तलक: तक।
बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुति, धन्यबाद .
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