मेरे बयां पे किसी को यक़ीं न आएगा
अगर अज़ां पे मेरी वो: हसीं न आएगा
कोई बताए कि ऐसी बहार क्या कीजे
शवाब पर जो गुले-आतशीं न आएगा
अभी है वक़्त दिल का लेन-देन कर लीजे
क़रीब वर्न: कोई दिलनशीं न आएगा
हमारे बीच के रिश्ते में रूहदारी है
यहां ख़याले-दिले-नुक़्त:चीं न आएगा
ये: चांद रात भी क़ुबूल नहीं है हमको
नज़र जो बाम पे वो: महजबीं न आएगा
अजब है रंग मेरे यार की वफ़ाओं का
जहां बुलाओ उसे बस वहीं न आएगा
मेरी ग़ज़ल पे लाख मरहबा कहे दुनिया
तेरी ज़ुबां पे लफ़्ज़े-आफ़्रीं न आएगा !
तेरी तलाश में हम उस मक़ाम तक पहुंचे
जहां पे कोई भी अह् ले-ज़मीं न आएगा !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बयां: वक्तव्य, बयान का लघु; शवाब: पूर्ण यौवन; गुले-आतशीं: आग जैसे लाल रंग वाला बारहमासी गुलाब का फूल;
दिलनशीं: हृदय को लुभाने वाला; रूहदारी: आत्मिकता, आध्यात्मिकता; ख़याले-दिले-नुक़्त:चीं: छिद्रान्वेषी हृदय का विचार; बाम: झरोखा; महजबीं: चंद्रभाल; मरहबा: साधु-साधु; लफ़्ज़े-आफ़्रीं: वाह-वाह, प्रशंसा का शब्द; मक़ाम: स्थल; अह् ले-ज़मीं: पृथ्वी-वासी।
अगर अज़ां पे मेरी वो: हसीं न आएगा
कोई बताए कि ऐसी बहार क्या कीजे
शवाब पर जो गुले-आतशीं न आएगा
अभी है वक़्त दिल का लेन-देन कर लीजे
क़रीब वर्न: कोई दिलनशीं न आएगा
हमारे बीच के रिश्ते में रूहदारी है
यहां ख़याले-दिले-नुक़्त:चीं न आएगा
ये: चांद रात भी क़ुबूल नहीं है हमको
नज़र जो बाम पे वो: महजबीं न आएगा
अजब है रंग मेरे यार की वफ़ाओं का
जहां बुलाओ उसे बस वहीं न आएगा
मेरी ग़ज़ल पे लाख मरहबा कहे दुनिया
तेरी ज़ुबां पे लफ़्ज़े-आफ़्रीं न आएगा !
तेरी तलाश में हम उस मक़ाम तक पहुंचे
जहां पे कोई भी अह् ले-ज़मीं न आएगा !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बयां: वक्तव्य, बयान का लघु; शवाब: पूर्ण यौवन; गुले-आतशीं: आग जैसे लाल रंग वाला बारहमासी गुलाब का फूल;
दिलनशीं: हृदय को लुभाने वाला; रूहदारी: आत्मिकता, आध्यात्मिकता; ख़याले-दिले-नुक़्त:चीं: छिद्रान्वेषी हृदय का विचार; बाम: झरोखा; महजबीं: चंद्रभाल; मरहबा: साधु-साधु; लफ़्ज़े-आफ़्रीं: वाह-वाह, प्रशंसा का शब्द; मक़ाम: स्थल; अह् ले-ज़मीं: पृथ्वी-वासी।
कल 22/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
man ko bhayi ye rachna
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen