फ़रेब दिल का मिटा लिया क्या
नज़र से पर्दा हटा लिया क्या
किसी को धोखा किसी पे तुहमत
वफ़ा से दामन छुटा लिया क्या
गिरा चुके थे जो अपना ईमां
ख़ुदा ने उनको उठा लिया क्या
तमाम ज़ुल्मात पे आप चुप हैं
ज़ुबां को अपनी कटा लिया क्या
नफ़स-नफ़स में जो लफ़्ज़े-तू है
मेयार अपना घटा लिया क्या
ये: लो, फ़रिश्ते भी आ गए हैं
अज़ल का सामां जुटा लिया क्या
न फ़िक्रे-उक़्बा, न ख़ौफ़े-दुनिया
ख़ुदा से सौदा पटा लिया क्या ?!
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़रेब: छद्म; नज़र से पर्दा: दृष्टि पर पड़ा आवरण; तुहमत: दोषारोपण; वफ़ा: सत्यता; दामन: आंचल;
ईमां: आस्था; ज़ुल्मात: अत्याचार (बहु.); ज़ुबां: जिव्हा; सांस-सांस, बात-बात; लफ़्ज़े-तू: 'तू' का संबोधन, अभद्र भाषा;
मेयार: सामाजिक प्रतिष्ठा; फ़रिश्ते: मृत्यु-दूत; अज़ल का सामां: मृत्यु का सामान, प्रबंध;
फ़िक्रे-उक़्बा: परलोक की चिंता; ख़ौफ़े-दुनिया: संसार या लोक-लाज का भय।
नज़र से पर्दा हटा लिया क्या
किसी को धोखा किसी पे तुहमत
वफ़ा से दामन छुटा लिया क्या
गिरा चुके थे जो अपना ईमां
ख़ुदा ने उनको उठा लिया क्या
तमाम ज़ुल्मात पे आप चुप हैं
ज़ुबां को अपनी कटा लिया क्या
नफ़स-नफ़स में जो लफ़्ज़े-तू है
मेयार अपना घटा लिया क्या
ये: लो, फ़रिश्ते भी आ गए हैं
अज़ल का सामां जुटा लिया क्या
न फ़िक्रे-उक़्बा, न ख़ौफ़े-दुनिया
ख़ुदा से सौदा पटा लिया क्या ?!
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़रेब: छद्म; नज़र से पर्दा: दृष्टि पर पड़ा आवरण; तुहमत: दोषारोपण; वफ़ा: सत्यता; दामन: आंचल;
ईमां: आस्था; ज़ुल्मात: अत्याचार (बहु.); ज़ुबां: जिव्हा; सांस-सांस, बात-बात; लफ़्ज़े-तू: 'तू' का संबोधन, अभद्र भाषा;
मेयार: सामाजिक प्रतिष्ठा; फ़रिश्ते: मृत्यु-दूत; अज़ल का सामां: मृत्यु का सामान, प्रबंध;
फ़िक्रे-उक़्बा: परलोक की चिंता; ख़ौफ़े-दुनिया: संसार या लोक-लाज का भय।
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