बात जब ज़िंदगी की आती है
याद अपनी ख़ुदी की आती है
काट कर उम्र जंगे-हस्ती में
राह घर वापसी की आती है
दाग़ जिस दिन निकल गए दिल के
रात अक्सर ख़ुशी की आती है
हो थकन ज़ीस्त में तवाज़ुन की
नींद तब बेख़ुदी की आती है
तोड़ दे दिल सहर किसी का जब
शाम बादाकशी की आती है
मग़रिबे-ज़ीस्त की सियाही में
रौशनी बंदगी की आती है
चल दिए दोस्त हम, ख़ुदा हाफ़िज़
पालकी ज़िंदगी की आती है !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुदी: स्वाभिमान; जंगे-हस्ती: जीवन-संग्राम; दाग़: दोष; ज़ीस्त: जीवन; तवाज़ुन: संतुलन; बेख़ुदी: आत्म-विस्मृति;
सहर: उष: काल; बादाकशी: मद्य-पान; मग़रिबे-ज़ीस्त: जीवन-संध्या; सियाही: अंधकार; रौशनी: प्रकाश; बंदगी: भक्ति, आध्यात्म;
ख़ुदा हाफ़िज़: ईश्वर रक्षा करे; पालकी: विमान, अर्थी।
याद अपनी ख़ुदी की आती है
काट कर उम्र जंगे-हस्ती में
राह घर वापसी की आती है
दाग़ जिस दिन निकल गए दिल के
रात अक्सर ख़ुशी की आती है
हो थकन ज़ीस्त में तवाज़ुन की
नींद तब बेख़ुदी की आती है
तोड़ दे दिल सहर किसी का जब
शाम बादाकशी की आती है
मग़रिबे-ज़ीस्त की सियाही में
रौशनी बंदगी की आती है
चल दिए दोस्त हम, ख़ुदा हाफ़िज़
पालकी ज़िंदगी की आती है !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुदी: स्वाभिमान; जंगे-हस्ती: जीवन-संग्राम; दाग़: दोष; ज़ीस्त: जीवन; तवाज़ुन: संतुलन; बेख़ुदी: आत्म-विस्मृति;
सहर: उष: काल; बादाकशी: मद्य-पान; मग़रिबे-ज़ीस्त: जीवन-संध्या; सियाही: अंधकार; रौशनी: प्रकाश; बंदगी: भक्ति, आध्यात्म;
ख़ुदा हाफ़िज़: ईश्वर रक्षा करे; पालकी: विमान, अर्थी।
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