बच गए गर फ़रेब खाने से
क्या कहेंगे भला ज़माने से
आप ख़ुद ही ठिठक गए वर्ना
किसने रोका क़रीब आने से
एक कोशिश तो कीजिए शायद
बात बन जाए मुस्कुराने से
दोस्ती यूं नहीं चला करती
बाज़ आ जाएं दिल जलाने से
तोहफ़:-ए-दिल संभाल के रखियो
जो मिला है ग़रीब ख़ाने से
तंज़ करने लगे हैं वो: हम पर
तीर चूका नहीं निशाने से
थी तुम्हें ख़ुल्द में ज़रूरत तो
रोक लेते हमें बहाने से !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गर: यदि; फ़रेब: छल-कपट; तोहफ़:-ए-दिल: हृदय-रूपी उपहार; ग़रीब ख़ाना: आतिथ्य-कर्त्ता का घर; तंज़: व्यंग्य; ख़ुल्द: स्वर्ग।
क्या कहेंगे भला ज़माने से
आप ख़ुद ही ठिठक गए वर्ना
किसने रोका क़रीब आने से
एक कोशिश तो कीजिए शायद
बात बन जाए मुस्कुराने से
दोस्ती यूं नहीं चला करती
बाज़ आ जाएं दिल जलाने से
तोहफ़:-ए-दिल संभाल के रखियो
जो मिला है ग़रीब ख़ाने से
तंज़ करने लगे हैं वो: हम पर
तीर चूका नहीं निशाने से
थी तुम्हें ख़ुल्द में ज़रूरत तो
रोक लेते हमें बहाने से !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गर: यदि; फ़रेब: छल-कपट; तोहफ़:-ए-दिल: हृदय-रूपी उपहार; ग़रीब ख़ाना: आतिथ्य-कर्त्ता का घर; तंज़: व्यंग्य; ख़ुल्द: स्वर्ग।
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