यौमे-जम्हूरियत पर ख़ास
सदमे में हैं हुज़ूर के: मौक़ा निकल गयादिल्ली का तख़्त हाथ में आ के फिसल गया
कल तक खड़े हुए थे ख़िलाफ़त में शाह की
मनसब मिला तो आपका लोहा पिघल गया
जम्हूरियत के नाम पे घर-बार लुट गया
आख़िर उम्मीद का दिन नाकाम ढल गया
ईमां ख़रीदने को मेरा शाह अड़ गया
अल्लाह तेरा शुक्र है कि दिल संभल गया
आमद पे मेरी बज़्म में वो: ख़ुश न थे अगर
दिल बल्लियों जनाब का क्यूं कर उछल गया
हम आ चुके थे दूर तलाशे-बहार में
क़िस्मत की बात ख़ुल्द का मौसम बदल गया !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सदमे में: आघात की स्थिति में; ख़िलाफ़त: विरोध; मनसब: ऊंचा पद; लोहा: संघर्ष की भावना; जम्हूरियत: गणतंत्र;
ईमां: नैतिकता; आमद: आगमन; बज़्म: सभा; तलाशे-बहार: बसंत की खोज; ख़ुल्द: स्वर्ग।
बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
जवाब देंहटाएंगणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
संजय भास्कर
http://sanjaybhaskar.blogspot.in