दर्द दुनिया के मेरी चश्म में उतर आए
बड़ी ख़ुशी है कि मेहमान सही घर आए
तुम्हारी याद जो आई तो मोजज़े की तरह
कई मक़ामे-इश्क़ ज़ेह्न में उभर आए
न जी को चैन मिला और न रूह को तस्कीं
तेरे ख़याल हमें क्यूं रहे-सफ़र आए
तमाम उम्र गुज़ारी बिना तग़ाफ़ुल के
उम्मीद तो है कि उम्मीद कोई बर आए
बचा नहीं है कोई उन्स ज़िंदगी से मुझे
दुआ करो कि फ़रिश्ता मेरा नज़र आए
वक़्ते-मग़रिब जहां में आए थे शम्'अ बन कर
है तमन्ना कि मौत अब लबे-सहर आए
ख़ुदा से रू-ब-रू हों हम तो ये: नज़ारा हो
अज़ां लबों पे रहे और निगाह भर आए !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: चश्म: नयन; मोजज़ा: चमत्कार; मक़ामे-इश्क़: प्रेम से सम्बंधित स्थल; ज़ेह्न: मस्तिष्क, स्मृति;
तग़ाफ़ुल: आपत्ति; उन्स: लगाव, अनुराग; फ़रिश्ता: मृत्यु-दूत; सांध्य-समय; रू-ब-रू: समक्ष; नज़ारा: दृश्य।
बड़ी ख़ुशी है कि मेहमान सही घर आए
तुम्हारी याद जो आई तो मोजज़े की तरह
कई मक़ामे-इश्क़ ज़ेह्न में उभर आए
न जी को चैन मिला और न रूह को तस्कीं
तेरे ख़याल हमें क्यूं रहे-सफ़र आए
तमाम उम्र गुज़ारी बिना तग़ाफ़ुल के
उम्मीद तो है कि उम्मीद कोई बर आए
बचा नहीं है कोई उन्स ज़िंदगी से मुझे
दुआ करो कि फ़रिश्ता मेरा नज़र आए
वक़्ते-मग़रिब जहां में आए थे शम्'अ बन कर
है तमन्ना कि मौत अब लबे-सहर आए
ख़ुदा से रू-ब-रू हों हम तो ये: नज़ारा हो
अज़ां लबों पे रहे और निगाह भर आए !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: चश्म: नयन; मोजज़ा: चमत्कार; मक़ामे-इश्क़: प्रेम से सम्बंधित स्थल; ज़ेह्न: मस्तिष्क, स्मृति;
तग़ाफ़ुल: आपत्ति; उन्स: लगाव, अनुराग; फ़रिश्ता: मृत्यु-दूत; सांध्य-समय; रू-ब-रू: समक्ष; नज़ारा: दृश्य।
आपकी लिखी रचना बुधवार 29 जनवरी 2014 को लिंक की जाएगी...............
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आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बढ़िया ग़ज़ल
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