तेरे ग़ुरूर के आगे बिखर गए होते
ज़मीर साथ न देता तो मर गए होते
तेरे निज़ाम में जज़्बात की जगह होती
हमारे ख़्वाब भी शायद संवर गए होते
किसी ने काश हमें आज़मा लिया होता
तो हम जहां में कई रंग भर गए होते
रहे-अज़ल में अगर आप सदा दे देते
जहां क़दम थे हमारे ठहर गए होते
हुए न कर्बला में हम हुसैन के साथी
वगरन: हम हुदूद से गुज़र गए होते
ख़ुदा यक़ीन न करता अगर अक़ीदत पर
तो हम कभी के नज़र से उतर गए होते !
(2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़ुरूर: घमण्ड; ज़मीर: विवेक; निज़ाम: राज; भावनाएं;मृत्यु का मार्ग;
सदा: आवाज़, पुकार; वगरन:: वर्ना, अन्यथा; हुदूद: सीमाएं; अक़ीदत: आस्था।
ज़मीर साथ न देता तो मर गए होते
तेरे निज़ाम में जज़्बात की जगह होती
हमारे ख़्वाब भी शायद संवर गए होते
किसी ने काश हमें आज़मा लिया होता
तो हम जहां में कई रंग भर गए होते
रहे-अज़ल में अगर आप सदा दे देते
जहां क़दम थे हमारे ठहर गए होते
हुए न कर्बला में हम हुसैन के साथी
वगरन: हम हुदूद से गुज़र गए होते
ख़ुदा यक़ीन न करता अगर अक़ीदत पर
तो हम कभी के नज़र से उतर गए होते !
(2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़ुरूर: घमण्ड; ज़मीर: विवेक; निज़ाम: राज; भावनाएं;मृत्यु का मार्ग;
सदा: आवाज़, पुकार; वगरन:: वर्ना, अन्यथा; हुदूद: सीमाएं; अक़ीदत: आस्था।
हुए न कर्बला में हम हुसैन के साथी
जवाब देंहटाएंवगरन: हम हुदूद से गुज़र गए होते
kya baat hai .........waah