अब क़यामत शहर में हो तो हो
वो: हमारे असर में हो तो हो
आशिक़ों के भरम निराले हैं
दाग़ माहो-क़मर में हो तो हो
खोल रक्खी हैं खिड़कियां हमने
रौशनी उनके घर में हो तो हो
उम्र भर लोग दिल लगाते हैं
फ़ैसला इक नज़र में हो तो हो
मंज़िलों से पुकार आई है
दिल दोबारा सफ़र में हो तो हो
हम न तूफ़ां से हार मानेंगे
फिर सफ़ीना भंवर में हो तो हो
हम के: बामे-नुहुम पे आ पहुंचे
ज़िक्र अपना ख़बर में हो तो हो !
(2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़यामत: प्रलय; माहो-क़मर: चंद्रमा; सफ़ीना: नाव; बामे-नुहुम: नौवां आकाश,परलोक का प्रवेश-द्वार।
वो: हमारे असर में हो तो हो
आशिक़ों के भरम निराले हैं
दाग़ माहो-क़मर में हो तो हो
खोल रक्खी हैं खिड़कियां हमने
रौशनी उनके घर में हो तो हो
उम्र भर लोग दिल लगाते हैं
फ़ैसला इक नज़र में हो तो हो
मंज़िलों से पुकार आई है
दिल दोबारा सफ़र में हो तो हो
हम न तूफ़ां से हार मानेंगे
फिर सफ़ीना भंवर में हो तो हो
हम के: बामे-नुहुम पे आ पहुंचे
ज़िक्र अपना ख़बर में हो तो हो !
(2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़यामत: प्रलय; माहो-क़मर: चंद्रमा; सफ़ीना: नाव; बामे-नुहुम: नौवां आकाश,परलोक का प्रवेश-द्वार।
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