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शनिवार, 21 दिसंबर 2013

बहारों के कर्ज़दार...!

तेरी   नज़रों   में      ऐतबार  नहीं
तू  मेरी बज़्म  का  किरदार  नहीं

ये:   ख़िजाएं    क़ुबूल    हैं  हमको
हम   बहारों   के   कर्ज़दार    नहीं

ख़ास  एहबाब की  नशिस्त  है  ये:
आप  फ़ेहरिस्त   में  शुमार  नहीं

सौदा-ए-दिल    सुकून  में  कीजे
ये:   तिजारत   सरे-बाज़ार  नहीं

लोग     डरते   हैं   कामयाबी  से
मरहले   इश्क़  के    दुश्वार  नहीं

आ  किसी  और  शहर  चलते  हैं
यां  कोई  आज   ग़मगुसार  नहीं

शोर  करते  हैं  जो  वफ़ाओं  का
वो:  शबे-ग़म  के  राज़दार  नहीं !

                                           ( 2013 )

                                    -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: ऐतबार: विश्वास; बज़्म: गोष्ठी; किरदार: चरित्र; ख़िजाएं: पतझड़; ऋणी; ख़ास  एहबाब: विशिष्ट मित्र-गण; 
नशिस्त: सभा, गोष्ठी;   फ़ेहरिस्त: सूची;   शुमार: सम्मिलित, गण्य; सौदा-ए-दिल: हृदय का लेन-देन; सुकून: निश्चिंतता; 
तिजारत: व्यापार; सरे-बाज़ार: बीच बाज़ार; मरहले: पड़ाव;  दुश्वार: कठिन; यां: यहां; ग़मगुसार: दुःख में सांत्वना देने वाला; 
शबे-ग़म: दुःख की निशा;  राज़दार: रहस्य में भागीदार। 

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