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मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

दिन बदल गए !

ऐसा   करम   हुआ    के:  मेरे  दिन  बदल  गए
किसकी  लगी  दुआ  के:  मेरे  दिन  बदल  गए

दुश्मन  ने   मेरा  नाम   ज़ेहन  से  मिटा  दिया
कैसी   हुई     ख़ता    के:  मेरे  दिन  बदल  गए

बदलीं   ज़रूर   कुछ  तो   ज़माने  की   निगाहें
जिस दिन अयां हुआ  के:  मेरे  दिन  बदल  गए

हिर्सो-हवस    हो     के:   तेरा    अंदाज़े-गुफ़्तगू
सब  कुछ  बदल  गया  के:  मेरे  दिन  बदल  गए

अब  भी   वही  हूं  मैं    तेरे  दर  पर  पड़ा  हुआ
किस बात की  अना  के:  मेरे  दिन  बदल  गए

मोहसिन   कहें    हबीब   कहें    या   ख़ुदा  कहें
वो: दिल  में आ बसा के:  मेरे  दिन  बदल  गए

उस  नूरे-इलाही  में     अक़ीदत  की    बात  है
ज़ानू  से  सर  लगा  के:  मेरे  दिन  बदल  गए  !

                                                                    ( 2013 )

                                                             -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: करम: कृपा; दुआ: शुभकामना; ज़ेहन: मनोमस्तिष्क; ख़ता: अपराध, दोष; अयां: स्पष्ट; हिर्सो-हवस: लोभ-लालच; 
अंदाज़े-गुफ़्तगू: बातचीत की शैली; अना: अहंकार; मोहसिन: अनुग्रह करने वाला; हबीब: प्रेमी, शुभचिंतक; 
नूरे-इलाही: ईश्वरीय प्रकाश, ईश्वर का आभा-मंडल; अक़ीदत: आस्था; ज़ानू: घुटना। 

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