अपनी अपनी शराब है यारों
अपना अपना सराब है यारों
रिज़्क़ हासिल नहीं फ़क़ीरों को
वक़्त ख़ाना- ख़राब है यारों
अंदलीबे-चमन को होश नहीं
और सर पर उक़ाब है यारों
ज़िंदगी मुख़्तसर फ़साना है
चंद रोज़ा हिसाब है यारों
अश्क सीने में जम गए सारे
इसलिए इज़्तेराब है यारों
जांच लीजे क़रीब आ के भी
दिल सरासर गुलाब है यारों
वो: हमारा ख़ुदा नहीं हरगिज़
उसके रुख़ पे हिजाब है यारों
शौक़ से भूल जाइए इसको
यूं ग़ज़ल लाजवाब है यारों !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सराब: मरुजल, छलावा; रिज़्क़: भोजन, दैनिक ख़ुराक़; फ़क़ीरों: भिक्षुकों, सन्यासियों; ख़ाना- ख़राब: बे-घर, भटकता हुआ; अंदलीबे-चमन: उपवन की कोयल; उक़ाब: गरुड़, छोटे पक्षियों का शिकार करने वाला पक्षी; मुख़्तसर: संक्षिप्त; फ़साना: मिथ्या कहानी;
चंद रोज़ा: चार दिन का; इज़्तेराब: व्याकुलता; रुख़: मुख; हिजाब: आवरण। .
अपना अपना सराब है यारों
रिज़्क़ हासिल नहीं फ़क़ीरों को
वक़्त ख़ाना- ख़राब है यारों
अंदलीबे-चमन को होश नहीं
और सर पर उक़ाब है यारों
ज़िंदगी मुख़्तसर फ़साना है
चंद रोज़ा हिसाब है यारों
अश्क सीने में जम गए सारे
इसलिए इज़्तेराब है यारों
जांच लीजे क़रीब आ के भी
दिल सरासर गुलाब है यारों
वो: हमारा ख़ुदा नहीं हरगिज़
उसके रुख़ पे हिजाब है यारों
शौक़ से भूल जाइए इसको
यूं ग़ज़ल लाजवाब है यारों !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सराब: मरुजल, छलावा; रिज़्क़: भोजन, दैनिक ख़ुराक़; फ़क़ीरों: भिक्षुकों, सन्यासियों; ख़ाना- ख़राब: बे-घर, भटकता हुआ; अंदलीबे-चमन: उपवन की कोयल; उक़ाब: गरुड़, छोटे पक्षियों का शिकार करने वाला पक्षी; मुख़्तसर: संक्षिप्त; फ़साना: मिथ्या कहानी;
चंद रोज़ा: चार दिन का; इज़्तेराब: व्याकुलता; रुख़: मुख; हिजाब: आवरण। .
sharab ke uppar poem
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