इस दौर का अमल है के: सरकार ख़ुश रहे
अल्लाह ख़ुश रहे न रहे ज़ार ख़ुश रहे
मरती रहे अवाम अगर भूख से मरे
हाकिम है फ़िक्रमंद के: बाज़ार ख़ुश रहे
इस दौरे-सियासत के क़वायद कमाल हैं
कट जाएं सब सिपाही प' सरदार ख़ुश रहे
एहसान कीजिए के: चले आएं ख़्वाब में
क्यूं कर न कभी आपका बीमार ख़ुश रहे
करता है बंदगी में वफ़ा की अगर उमीद
तेरा भी फ़र्ज़ है के: तलबगार ख़ुश रहे
क्या तब भी इन्क़िलाब ज़रूरी नहीं यहां
मासूम क़ैद में हों गुनहगार ख़ुश रहे
अब कीजिए अहद के: लौट आएं वही दिन
जब मुफ़लिसो-मज़ूर का घर-बार ख़ुश रहे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अमल: आचरण; ज़ार: रूस के निर्दयी, जन-विरोधी शासक जो 1917 की जन-क्रांति में परास्त हुए;
अवाम: जनता; हाकिम: शासक; फ़िक्रमंद: चिंतित; दौरे-सियासत: राजनैतिक युग; क़वायद: नियम (बहु.);
बंदगी: भक्ति; वफ़ा: आस्था, ईमानदारी; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; तलबगार: आशा रखने वाला; इन्क़िलाब: क्रान्ति;
मासूम: निर्दोष; गुनहगार: अपराधी; अहद: संकल्प, प्रतिज्ञा; मुफ़लिसो-मज़ूर: निर्धन और श्रमिक-वर्ग।
अल्लाह ख़ुश रहे न रहे ज़ार ख़ुश रहे
मरती रहे अवाम अगर भूख से मरे
हाकिम है फ़िक्रमंद के: बाज़ार ख़ुश रहे
इस दौरे-सियासत के क़वायद कमाल हैं
कट जाएं सब सिपाही प' सरदार ख़ुश रहे
एहसान कीजिए के: चले आएं ख़्वाब में
क्यूं कर न कभी आपका बीमार ख़ुश रहे
करता है बंदगी में वफ़ा की अगर उमीद
तेरा भी फ़र्ज़ है के: तलबगार ख़ुश रहे
क्या तब भी इन्क़िलाब ज़रूरी नहीं यहां
मासूम क़ैद में हों गुनहगार ख़ुश रहे
अब कीजिए अहद के: लौट आएं वही दिन
जब मुफ़लिसो-मज़ूर का घर-बार ख़ुश रहे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अमल: आचरण; ज़ार: रूस के निर्दयी, जन-विरोधी शासक जो 1917 की जन-क्रांति में परास्त हुए;
अवाम: जनता; हाकिम: शासक; फ़िक्रमंद: चिंतित; दौरे-सियासत: राजनैतिक युग; क़वायद: नियम (बहु.);
बंदगी: भक्ति; वफ़ा: आस्था, ईमानदारी; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; तलबगार: आशा रखने वाला; इन्क़िलाब: क्रान्ति;
मासूम: निर्दोष; गुनहगार: अपराधी; अहद: संकल्प, प्रतिज्ञा; मुफ़लिसो-मज़ूर: निर्धन और श्रमिक-वर्ग।
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