जी बड़ा तेज़ ज़हर पीते हैं
आजकल आठ पहर पीते हैं
जब कोई ज़ख़्म उभर आता है
भूल के अपनी उम्र पीते हैं
जाम उमरा नहीं छुआ करते
ख़ूने-इंसान मगर पीते हैं
जीत के आए हैं अंधेरों को
जश्न में जामे-सहर पीते हैं
उज्र क्यूं हो किसी फ़रिश्ते को
अपने हिस्से की अगर पीते हैं
ईद पे आप बग़लगीर हुए
उस इनायत का असर पीते हैं
तूर पे त'अर्रुफ़ हुआ जबसे
आपका जामे-नज़र पीते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जाम: मदिरा-पात्र; उमरा: अमीर ( बहुव. ), संभ्रांत-जन; ख़ूने-इंसान: मनुष्य-रक्त; जामे-सहर: उष: काल के प्रकाश की मदिरा; उज्र: आपत्ति; फ़रिश्ते: देवदूत; बग़लगीर: गले लगना; इनायत: कृपा; तूर: अरब का एक पहाड़ जहां हज़रत मूसा अ. स. को ख़ुदा के प्रकाश की झलक मिली; त'अर्रुफ़: परिचय; जामे-नज़र: दृष्टि-रूपी मदिरा।
आजकल आठ पहर पीते हैं
जब कोई ज़ख़्म उभर आता है
भूल के अपनी उम्र पीते हैं
जाम उमरा नहीं छुआ करते
ख़ूने-इंसान मगर पीते हैं
जीत के आए हैं अंधेरों को
जश्न में जामे-सहर पीते हैं
उज्र क्यूं हो किसी फ़रिश्ते को
अपने हिस्से की अगर पीते हैं
ईद पे आप बग़लगीर हुए
उस इनायत का असर पीते हैं
तूर पे त'अर्रुफ़ हुआ जबसे
आपका जामे-नज़र पीते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जाम: मदिरा-पात्र; उमरा: अमीर ( बहुव. ), संभ्रांत-जन; ख़ूने-इंसान: मनुष्य-रक्त; जामे-सहर: उष: काल के प्रकाश की मदिरा; उज्र: आपत्ति; फ़रिश्ते: देवदूत; बग़लगीर: गले लगना; इनायत: कृपा; तूर: अरब का एक पहाड़ जहां हज़रत मूसा अ. स. को ख़ुदा के प्रकाश की झलक मिली; त'अर्रुफ़: परिचय; जामे-नज़र: दृष्टि-रूपी मदिरा।
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