ख़्वाब पलकों का वतन छोड़ गए
सुर्ख़ आंखों में जलन छोड़ गए
चार पत्ते हवा से क्या टूटे
सारे सुर्ख़ाब चमन छोड़ गए
ख़ूब मोहसिन हुए मेरे मेहमां
चंद अंगुश्त क़फ़न छोड़ गए
ख़ार दिल से निकल गए सारे
ज़िंदगी भर की चुभन छोड़ गए
हिंद को अज़्म बख़्शने वाले
दुश्मने-चैनो-अमन छोड़ गए
ले गए रूह आसमां वाले
जिस्म मिट्टी में दफ़्न छोड़ गए
मीरो-ग़ालिब हमारे हिस्से में
सिर्फ़ आज़ारे-सुख़न छोड़ गए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सुर्ख़: लाल; परिंद: पक्षी; मोहसिन: कृपालु-जन; चंद अंगुश्ते-क़फ़न: चार अंगुल शवावरण; ख़ार: कांटे; अज़्म: महत्ता;
दुश्मने-चैनो-अमन: सुख-शांति के शत्रु; रूह: आत्मा; आसमां वाले : परलोक-वासी, मृत्यु-दूत; जिस्म: शरीर;
मीरो-ग़ालिब: हज़रात मीर तक़ी 'मीर' और मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महानतम शायर; आज़ारे-सुख़न: रचना-कर्म का रोग।
सुर्ख़ आंखों में जलन छोड़ गए
चार पत्ते हवा से क्या टूटे
सारे सुर्ख़ाब चमन छोड़ गए
ख़ूब मोहसिन हुए मेरे मेहमां
चंद अंगुश्त क़फ़न छोड़ गए
ख़ार दिल से निकल गए सारे
ज़िंदगी भर की चुभन छोड़ गए
हिंद को अज़्म बख़्शने वाले
दुश्मने-चैनो-अमन छोड़ गए
ले गए रूह आसमां वाले
जिस्म मिट्टी में दफ़्न छोड़ गए
मीरो-ग़ालिब हमारे हिस्से में
सिर्फ़ आज़ारे-सुख़न छोड़ गए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सुर्ख़: लाल; परिंद: पक्षी; मोहसिन: कृपालु-जन; चंद अंगुश्ते-क़फ़न: चार अंगुल शवावरण; ख़ार: कांटे; अज़्म: महत्ता;
दुश्मने-चैनो-अमन: सुख-शांति के शत्रु; रूह: आत्मा; आसमां वाले : परलोक-वासी, मृत्यु-दूत; जिस्म: शरीर;
मीरो-ग़ालिब: हज़रात मीर तक़ी 'मीर' और मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महानतम शायर; आज़ारे-सुख़न: रचना-कर्म का रोग।
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