एक सौग़ाते-नूर ले आए
देखिए क्या हुज़ूर ले आए
तिफ़्ल हमसे उम्मीद रखते हैं
कुछ न कुछ तो ज़ुरूर ले आए
ज़िद पे आए हैं दुश्मने-तौबा
चश्म भर के सुरूर ले आए
ख़ूब ग़म का इलाज ढूंढा है
मयकदे में तुयूर ले आए
क्या अदा पाई मोहसिने-जां ने
दो-जहां का ग़ुरूर ले आए
शाह सुनता नहीं ग़रीबों की
लोग आवाज़े-सूर ले आए
हम फ़क़ीरों के पास है भी क्या
शायरी का शऊर ले आए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सौग़ाते-नूर: प्रकाश का उपहार; हुज़ूर: स्वामी, ईश्वर; तिफ़्ल: बच्चे; दुश्मने-तौबा: शराब न पीने की प्रतिज्ञा के शत्रु;
चश्म: आंख; सुरूर: नशा, मदिरा; मयकदा: मदिरालय; तुयूर: चहकने वाली चिड़िएं; मोहसिने-जां: प्राणों पर अनुग्रह करने वाला;
दो-जहां: दोनों लोक, इहलोक-परलोक; ग़ुरूर: घमण्ड; आवाज़े-सूर: दुंदुभि का स्वर; फ़क़ीर: संत; शऊर: शिष्टाचार।
देखिए क्या हुज़ूर ले आए
तिफ़्ल हमसे उम्मीद रखते हैं
कुछ न कुछ तो ज़ुरूर ले आए
ज़िद पे आए हैं दुश्मने-तौबा
चश्म भर के सुरूर ले आए
ख़ूब ग़म का इलाज ढूंढा है
मयकदे में तुयूर ले आए
क्या अदा पाई मोहसिने-जां ने
दो-जहां का ग़ुरूर ले आए
शाह सुनता नहीं ग़रीबों की
लोग आवाज़े-सूर ले आए
हम फ़क़ीरों के पास है भी क्या
शायरी का शऊर ले आए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सौग़ाते-नूर: प्रकाश का उपहार; हुज़ूर: स्वामी, ईश्वर; तिफ़्ल: बच्चे; दुश्मने-तौबा: शराब न पीने की प्रतिज्ञा के शत्रु;
चश्म: आंख; सुरूर: नशा, मदिरा; मयकदा: मदिरालय; तुयूर: चहकने वाली चिड़िएं; मोहसिने-जां: प्राणों पर अनुग्रह करने वाला;
दो-जहां: दोनों लोक, इहलोक-परलोक; ग़ुरूर: घमण्ड; आवाज़े-सूर: दुंदुभि का स्वर; फ़क़ीर: संत; शऊर: शिष्टाचार।
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