रास्तों की शम'अ बुझा लीजे
आज ईमान आज़मा लीजे
है दिमाग़ी फ़ितूर हुस्न अगर
हो सके तो नज़र हटा लीजे
आप वाईज़ हैं कीजिए इस्ला:
मैकदे से हमें उठा लीजे
ख़ौफ़ है गर तुम्हें ज़माने का
तो हमें ख़्वाब में बसा लीजे
शायरी की दूकान से आगे
सोच का दायरा बढ़ा लीजे
दूसरों के लिए दुआ करके
रूह को सुर्ख़रू: बना लीजे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दिमाग़ी फ़ितूर: मानसिक भ्रम; वाईज़: धर्मोपदेशक, विद्वान; इस्ला::परामर्श; मैकदे: मदिरालय; ख़ौफ़: भय; सुर्ख़रू:: सफल।
आज ईमान आज़मा लीजे
है दिमाग़ी फ़ितूर हुस्न अगर
हो सके तो नज़र हटा लीजे
आप वाईज़ हैं कीजिए इस्ला:
मैकदे से हमें उठा लीजे
ख़ौफ़ है गर तुम्हें ज़माने का
तो हमें ख़्वाब में बसा लीजे
शायरी की दूकान से आगे
सोच का दायरा बढ़ा लीजे
दूसरों के लिए दुआ करके
रूह को सुर्ख़रू: बना लीजे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दिमाग़ी फ़ितूर: मानसिक भ्रम; वाईज़: धर्मोपदेशक, विद्वान; इस्ला::परामर्श; मैकदे: मदिरालय; ख़ौफ़: भय; सुर्ख़रू:: सफल।
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