हिज्र में दोस्तों से क्या कहते
चल बसे बस ख़ुदा-ख़ुदा कहते
उम्र भर को मुरीद कर लेते
तुमपे हम सिर्फ़ इक क़त'आ कहते
हम वफ़ा का यक़ीन कर लेते
तुम सरे-बज़्म आशना कहते
दुश्मनों में शुमार हो जाते
जो कभी उनको बेवफ़ा कहते
सी लिए लब तो रह गई इज़्ज़त
लोग वरना न जाने क्या कहते
मंज़िलें मुंतज़िर हैं मुद्दत से
हम ही डरते हैं अलविदा कहते
हां, शिकायत ख़ुदा से कर आए
ज़ख़्म को किस तरह शिफ़ा कहते !'
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हिज्र: वियोग; मुरीद: प्रशंसक; क़त'आ: किसी ग़ज़ल के दो अश'आर; सरे-बज़्म: भरी सभा में, सबके बीच;
आशना: मित्र,साथी,प्रेमी; शुमार: गिना जाना; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; शिफ़ा: आरोग्य।
चल बसे बस ख़ुदा-ख़ुदा कहते
उम्र भर को मुरीद कर लेते
तुमपे हम सिर्फ़ इक क़त'आ कहते
हम वफ़ा का यक़ीन कर लेते
तुम सरे-बज़्म आशना कहते
दुश्मनों में शुमार हो जाते
जो कभी उनको बेवफ़ा कहते
सी लिए लब तो रह गई इज़्ज़त
लोग वरना न जाने क्या कहते
मंज़िलें मुंतज़िर हैं मुद्दत से
हम ही डरते हैं अलविदा कहते
हां, शिकायत ख़ुदा से कर आए
ज़ख़्म को किस तरह शिफ़ा कहते !'
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हिज्र: वियोग; मुरीद: प्रशंसक; क़त'आ: किसी ग़ज़ल के दो अश'आर; सरे-बज़्म: भरी सभा में, सबके बीच;
आशना: मित्र,साथी,प्रेमी; शुमार: गिना जाना; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; शिफ़ा: आरोग्य।
Bahut khub Sir
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