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गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

शाह बदकार है...!

दोस्त  समझे    न   आशना  समझे
आप  हमको  न  जाने  क्या  समझे

मुफ़लिसी   का    क़ुसूर    है     सारा
लोग    नाहक़      हमें    बुरा  समझे

वक़्त   पड़ते    ही    चल  दिए  सारे
दोस्तों  को     मेरे    ख़ुदा     समझे

तिफ़्ल   वो:   दूर   तलक   जाता  है
जो  नसीहत  को   भी  दुआ  समझे

शाह      बदकार    है      फ़राउन  है
वक़्त  देखे    न   मुद्द'आ    समझे

क्या  कहें  उस   निज़ामे-शाही  को
आप-हम  को  महज़  गदा   समझे

ये:  ख़ुदा  के   ख़िलाफ़   साज़िश  है
कोई  हमको  अगर   ख़ुदा  समझे !

                                             ( 2013 )

                                        -सुरेश  स्वप्निल 

 शब्दार्थ: आशना: साथी, प्रेमी; मुफ़लिसी: निर्धनता; क़ुसूर: दोष; नाहक: अकारण, निरर्थक; तिफ़्ल: बच्चा; नसीहत: समझाइश; 
दुआ: शुभकामना; बदकार: बुरे काम करने वाला; फ़राउन: मृत्यु के बाद जीवित होने में विश्वास करने वाले मिस्र के निर्दयी शासक, 
जिनकी क़ब्र में उनके सेवकों को उनके शव के साथ जीवित दफ़ना दिया जाता था; महज़: मात्र; गदा: भिखारी।




1 टिप्पणी:



  1. ☆★☆★☆


    मुफ़लिसी का क़ुसूर है सारा
    लोग नाहक़ हमें बुरा समझे

    वक़्त पड़ते ही चल दिए सारे
    दोस्तों को मेरे ख़ुदा समझे

    वाह ! वाऽह…! और... वाऽहऽऽ…!

    बंधुवर आदरणीय सुरेश स्वप्निल जी
    अंतर्जाल-भ्रमण करते हुए अचानक आपके यहां पहुंच कर बहुत ख़ुशी हुई

    कई पोस्ट्स देखी आपकी ...
    बहुत परिपक्व लेखन है...
    पढ़ कर आनंद आया...

    आपकी लेखनी से सदैव सुंदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन होता रहे...

    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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