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शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

पांव फिसला अगर...

टूट  जाए  न  दिल  दिल्लगी  में  कहीं
आप  संजीदा  हों    ज़िंदगी    में  कहीं

हमको  ख़ुद से ये: उम्मीद हर्गिज़ न थी
घर   लुटा  आए    बाद:कशी    में  कहीं

हर  शबे-वस्ल  में  इक  नसीहत  भी  है
दर्द  भी   है  निहां    आशिक़ी   में  कहीं

एक  से  एक  दाना  हैं  इस  बज़्म  में
राज़  ज़ाहिर  न  हो  ख़ामुशी  में  कहीं

आज  हैं  हम  यहां  कल  गुज़र  जाएंगे
आ  मिलेंगे  कभी  ख़्वाब  में  ही  कहीं

मांगते  हैं    ख़ुदा  से  दुआ   हम  यही
अब  नज़र  आइए   आदमी  में  कहीं

तय  है  गिरना  निगाहों  में  अल्लाह  की
पांव  फिसला   अगर    बे-ख़ुदी  में  कहीं !

                                                        ( 2013 )

                                                   -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: संजीदा: गंभीर; बाद:कशी:मद्यपान की लत; शबे-वस्ल: मिलन-निशा; नसीहत: शिक्षा;  निहां: छिपा हुआ; 
            दाना: विद्वान; बज़्म: सभा, गोष्ठी; बे-ख़ुदी: अन्यमनस्कता !

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