ख़ुदी को भूल के हम ख़ुदकुशी न कर बैठें
ग़मों से टूट के ये: बुजदिली न कर बैठें
ख़ुदा बचाए जा रहे हैं वो: सियासत में
रवायतों के मुताबिक़ बदी न कर बैठें
नज़र नज़र में कर लिया किसी से अह्दे-वफ़ा
हंसी हंसी में वो: दीवानगी न कर बैठें
उठाए ख़ूब मफ़ायद चुकाएंगे कैसे
दबाव में वो: ग़लत को सही न कर बैठें
ख़ुदा पे हमको यक़ीं है कभी न हारेंगे
मगर जूनून में बादाकशी न कर बैठें
की एक बार जो तौबा हज़ार बार करी
कहीं ख़ुदा से भी हम दिल्लगी न कर बैठें !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुदी: अस्मिता, स्वाभिमान; ख़ुदकुशी: आत्म-घात; बुजदिली: कायरता; सियासत: राजनीति; रवायतों: परम्पराओं;
मुताबिक़: अनुसार; बदी: अ-कर्म, बुरा काम; अह्दे-वफ़ा: निर्वाह का संकल्प; दीवानगी: पागलपन, मूर्खता;मफ़ायद: फ़ायदा का बहुवचन, लाभ; जूनून: उन्माद; बादाकशी: मद्यपान; दिल्लगी: परिहास।
ग़मों से टूट के ये: बुजदिली न कर बैठें
ख़ुदा बचाए जा रहे हैं वो: सियासत में
रवायतों के मुताबिक़ बदी न कर बैठें
नज़र नज़र में कर लिया किसी से अह्दे-वफ़ा
हंसी हंसी में वो: दीवानगी न कर बैठें
उठाए ख़ूब मफ़ायद चुकाएंगे कैसे
दबाव में वो: ग़लत को सही न कर बैठें
ख़ुदा पे हमको यक़ीं है कभी न हारेंगे
मगर जूनून में बादाकशी न कर बैठें
की एक बार जो तौबा हज़ार बार करी
कहीं ख़ुदा से भी हम दिल्लगी न कर बैठें !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुदी: अस्मिता, स्वाभिमान; ख़ुदकुशी: आत्म-घात; बुजदिली: कायरता; सियासत: राजनीति; रवायतों: परम्पराओं;
मुताबिक़: अनुसार; बदी: अ-कर्म, बुरा काम; अह्दे-वफ़ा: निर्वाह का संकल्प; दीवानगी: पागलपन, मूर्खता;मफ़ायद: फ़ायदा का बहुवचन, लाभ; जूनून: उन्माद; बादाकशी: मद्यपान; दिल्लगी: परिहास।
आपकी यह रचना आज बुधवार (23-10-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 154 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंएक नजर मेरे अंगना में ...
''गुज़ारिश''
सादर
सरिता भाटिया
achhi rachna.
जवाब देंहटाएंबेहद खुबसूरत ग़ज़ल, बहुत ही बढ़िया!
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