रहे-अज़ल में फ़रिश्ते से दिल लगा बैठे
विसाल हो न सका मग़फ़िरत गंवा बैठे
न राहे-रास्त लगा रिंद लाख समझाया
ग़लत जगह पे शैख़ हाथ आज़मा बैठे
ख़ुदा को रास न आया बयान शायर का
सज़ाए-ज़ीस्त सात बार की सुना बैठे
हमें जहां न मिला हम जहां को मिल न सके
जहां-जहां से उठे रास्ता भुला बैठे
हुआ हबीब से रिश्ता तो खुल गईं रहें
ख़ुदा को याद किया और घर जला बैठे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रहे-अज़ल: मृत्यु-मार्ग; फ़रिश्ते: देवदूत; विसाल: मिलन; मग़फ़िरत: मोक्ष; राहे-रास्त: उचित मार्ग;
रिंद: मद्यप; शैख़: उत्साही धर्मोपदेशक; सज़ाए-ज़ीस्त: जीवन-दंड; हबीब: प्रेमी, गुरु, पीर।
विसाल हो न सका मग़फ़िरत गंवा बैठे
न राहे-रास्त लगा रिंद लाख समझाया
ग़लत जगह पे शैख़ हाथ आज़मा बैठे
ख़ुदा को रास न आया बयान शायर का
सज़ाए-ज़ीस्त सात बार की सुना बैठे
हमें जहां न मिला हम जहां को मिल न सके
जहां-जहां से उठे रास्ता भुला बैठे
हुआ हबीब से रिश्ता तो खुल गईं रहें
ख़ुदा को याद किया और घर जला बैठे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रहे-अज़ल: मृत्यु-मार्ग; फ़रिश्ते: देवदूत; विसाल: मिलन; मग़फ़िरत: मोक्ष; राहे-रास्त: उचित मार्ग;
रिंद: मद्यप; शैख़: उत्साही धर्मोपदेशक; सज़ाए-ज़ीस्त: जीवन-दंड; हबीब: प्रेमी, गुरु, पीर।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कुछ खास है हम सभी में - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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