ख़ुदी को याद रख के भूल जाइए दिल को
तलाशे-हुस्न में क्यूं कर गंवाइए दिल को
रखा है बांध के यूं ज़ुल्फे-ख़मीदा में उसे
सिला-ए-इश्क़ यही है सताइए दिल को
कोई कमी है इस शहर में हुस्न वालों की
यहां-वहां जहां चाहे गिराइए दिल को
मेरे मज़ार पे फिर आज रौशनी-सी है
तुलू हुई हैं उम्मीदें बुझाइए दिल को
ज़मीं-ए-मीर-ओ-ग़ालिब पे जो हुए पैदा
सुख़नवरों से कहां तक बचाइए दिल को
ज़रा बताए क्या बुराई है मयनोशी में
उसी से पूछ लें ज़ाहिद बुलाइए दिल को
बुला रहा है ख़ुदा अर्श पे ज़माने से
ख़याले-यार से अब तो हटाइए दिल को !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुदी: अस्मिता, स्वाभिमान; तलाशे-हुस्न: सौंदर्य की खोज; ज़ुल्फे-ख़मीदा: घुंघराली लटें; सिला-ए-इश्क़: प्रेम का प्रतिदान;
मज़ार: समाधि; तुलू: उदित; ज़मीं-ए-मीर-ओ-ग़ालिब: महान शायर मीर तक़ी 'मीर' और मिर्ज़ा ग़ालिब की भूमि; सुख़नवरों: रचनाकारों, शायरों; मयनोशी: मदिरा-पान; ज़ाहिद: धर्मोपदेशक; अर्श: आकाश, परलोक; ख़याले-यार: प्रिय का विचार, प्रिय का मोह।
तलाशे-हुस्न में क्यूं कर गंवाइए दिल को
रखा है बांध के यूं ज़ुल्फे-ख़मीदा में उसे
सिला-ए-इश्क़ यही है सताइए दिल को
कोई कमी है इस शहर में हुस्न वालों की
यहां-वहां जहां चाहे गिराइए दिल को
मेरे मज़ार पे फिर आज रौशनी-सी है
तुलू हुई हैं उम्मीदें बुझाइए दिल को
ज़मीं-ए-मीर-ओ-ग़ालिब पे जो हुए पैदा
सुख़नवरों से कहां तक बचाइए दिल को
ज़रा बताए क्या बुराई है मयनोशी में
उसी से पूछ लें ज़ाहिद बुलाइए दिल को
बुला रहा है ख़ुदा अर्श पे ज़माने से
ख़याले-यार से अब तो हटाइए दिल को !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुदी: अस्मिता, स्वाभिमान; तलाशे-हुस्न: सौंदर्य की खोज; ज़ुल्फे-ख़मीदा: घुंघराली लटें; सिला-ए-इश्क़: प्रेम का प्रतिदान;
मज़ार: समाधि; तुलू: उदित; ज़मीं-ए-मीर-ओ-ग़ालिब: महान शायर मीर तक़ी 'मीर' और मिर्ज़ा ग़ालिब की भूमि; सुख़नवरों: रचनाकारों, शायरों; मयनोशी: मदिरा-पान; ज़ाहिद: धर्मोपदेशक; अर्श: आकाश, परलोक; ख़याले-यार: प्रिय का विचार, प्रिय का मोह।
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