दूर हमसे सनम न जाएं कहीं
खा के झूठी क़सम न जाएं कहीं
मंज़िलें अब मेरी नज़र में हैं
छोड़ कर हमक़दम न जाएं कहीं
सांस आती है सांस जाती है
ज़िंदगी के भरम न जाएं कहीं
कर रहे हैं वो: बात जाने की
ख़्वाब मेरे सहम न जाएं कहीं
आह निकले के: मौत आ जाए
दर्द सीने में जम न जाएं कहीं
देख कर हुस्न उस परीवश का
वक़्त के पांव थम न जाएं कहीं
दोस्ती का पयाम आया है
अपने दीनो-धरम न जाएं कहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हमक़दम: पग-पग के साथी; भरम: भ्रम; परीवश: परियों जैसे चेहरे वाला; पयाम: संदेश।
खा के झूठी क़सम न जाएं कहीं
मंज़िलें अब मेरी नज़र में हैं
छोड़ कर हमक़दम न जाएं कहीं
सांस आती है सांस जाती है
ज़िंदगी के भरम न जाएं कहीं
कर रहे हैं वो: बात जाने की
ख़्वाब मेरे सहम न जाएं कहीं
आह निकले के: मौत आ जाए
दर्द सीने में जम न जाएं कहीं
देख कर हुस्न उस परीवश का
वक़्त के पांव थम न जाएं कहीं
दोस्ती का पयाम आया है
अपने दीनो-धरम न जाएं कहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हमक़दम: पग-पग के साथी; भरम: भ्रम; परीवश: परियों जैसे चेहरे वाला; पयाम: संदेश।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है भैया ।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है भैया ।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है भैया ।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है भैया ।
जवाब देंहटाएंसादर