ज़िक्रे-यारां रुला न दे हमको
ख़ुल्द से भी उठा न दे हमको
ऐ लबे-दोस्त ! ज़ब्त कर दो दिन
ज़िंदगी की दुआ न दे हमको
हम ग़मे-रोज़गार से ख़ुश हैं
ख़्वाब कोई नया न दे हमको
क़ब्र मेरी सजा रहा है यूं
वो मसीहा बना न दे हमको
दोस्त गिनने लगें रक़ीबों में
वक़्त ऐसी सज़ा न दे हमको
बेरुख़ी ठीक मगर तर्के-वफ़ा ?
ज़ख्म इतना बड़ा न दे हमको !
दोस्ती का पयाम भेजा है
शाह फिर से हरा न दे हमको !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़िक्रे-यारां: मित्रों का उल्लेख; ख़ुल्द: स्वर्ग; ऐ लबे-दोस्त: मित्र के अधर; ज़ब्त कर: संयम रख; ग़मे-रोज़गार: आजीविका का दुःख; मसीहा: ईश्वरीय दूत; रक़ीबों: शत्रुओं; बेरुख़ी: उदासीनता; तर्के-वफ़ा: निर्वाह से मुंह मोड़ना; पयाम: संदेश।
ख़ुल्द से भी उठा न दे हमको
ऐ लबे-दोस्त ! ज़ब्त कर दो दिन
ज़िंदगी की दुआ न दे हमको
हम ग़मे-रोज़गार से ख़ुश हैं
ख़्वाब कोई नया न दे हमको
क़ब्र मेरी सजा रहा है यूं
वो मसीहा बना न दे हमको
दोस्त गिनने लगें रक़ीबों में
वक़्त ऐसी सज़ा न दे हमको
बेरुख़ी ठीक मगर तर्के-वफ़ा ?
ज़ख्म इतना बड़ा न दे हमको !
दोस्ती का पयाम भेजा है
शाह फिर से हरा न दे हमको !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़िक्रे-यारां: मित्रों का उल्लेख; ख़ुल्द: स्वर्ग; ऐ लबे-दोस्त: मित्र के अधर; ज़ब्त कर: संयम रख; ग़मे-रोज़गार: आजीविका का दुःख; मसीहा: ईश्वरीय दूत; रक़ीबों: शत्रुओं; बेरुख़ी: उदासीनता; तर्के-वफ़ा: निर्वाह से मुंह मोड़ना; पयाम: संदेश।
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