चांद देखा नहीं ज़माने से
क्या मज़ा ईद यूं मनाने से
ग़ैर के हाथ भेजते हैं सलाम
आ ही जाते किसी बहाने से
ये अमल दोस्ती में ठीक नहीं
बाज़ आएं वो दिल दुखाने से
ईद मिलने सुबह से बैठे हैं
उनको फ़ुर्सत नहीं ज़माने से
आप कहिए के किसने रोका है
पास आ के क़बे मिलाने से
बा-वुज़ू हैं मियां गले मिल लें
कुछ न होगा क़रीब आने से !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़माने से: लम्बे समय से; ग़ैर: पराए; अमल: व्यवहार; बाज़ आना: दूर रहना; क़बे: कंधे; बा-वुज़ू: स्वच्छ, शुचित।
क्या मज़ा ईद यूं मनाने से
ग़ैर के हाथ भेजते हैं सलाम
आ ही जाते किसी बहाने से
ये अमल दोस्ती में ठीक नहीं
बाज़ आएं वो दिल दुखाने से
ईद मिलने सुबह से बैठे हैं
उनको फ़ुर्सत नहीं ज़माने से
आप कहिए के किसने रोका है
पास आ के क़बे मिलाने से
बा-वुज़ू हैं मियां गले मिल लें
कुछ न होगा क़रीब आने से !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़माने से: लम्बे समय से; ग़ैर: पराए; अमल: व्यवहार; बाज़ आना: दूर रहना; क़बे: कंधे; बा-वुज़ू: स्वच्छ, शुचित।
बहुत ही खूबसूरत अश'आर
जवाब देंहटाएं"आप कहिए के किसने रोका है
जवाब देंहटाएंपास आ के क़बे मिलाने से" क्या नाज़ुक-खयाली है ! मुबारक, मित्र.