उमीदों को फिर से जगाना पड़ेगा
जो जीना है तो मुस्कुराना पड़ेगा
न मानें अगर वो: जो दो-चार दिन में
तो अश्कों का दरिया बहाना पड़ेगा
बहुत मुस्कुराते हैं हमको सता के
किसी रोज़ हदिया चुकाना पड़ेगा
हमें ख़ुदकुशी में भी दिक़्क़त न होगी
मगर तुमको मय्यत में आना पड़ेगा
है दरकार इंसाफ़ की तो समझ लो
कभी न कभी सर उठाना पड़ेगा
सुना है इबादत दवा है ग़मों की
ये: नुस्ख़ा कभी आज़माना पड़ेगा !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हदिया: धर्म-सम्मत सेवा-मूल्य, दक्षिणा; मय्यत: अंतिम यात्रा; इबादत: भक्ति।
जो जीना है तो मुस्कुराना पड़ेगा
न मानें अगर वो: जो दो-चार दिन में
तो अश्कों का दरिया बहाना पड़ेगा
बहुत मुस्कुराते हैं हमको सता के
किसी रोज़ हदिया चुकाना पड़ेगा
हमें ख़ुदकुशी में भी दिक़्क़त न होगी
मगर तुमको मय्यत में आना पड़ेगा
है दरकार इंसाफ़ की तो समझ लो
कभी न कभी सर उठाना पड़ेगा
सुना है इबादत दवा है ग़मों की
ये: नुस्ख़ा कभी आज़माना पड़ेगा !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हदिया: धर्म-सम्मत सेवा-मूल्य, दक्षिणा; मय्यत: अंतिम यात्रा; इबादत: भक्ति।
khubsurat gajal...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन नहीं रहे कंप्यूटर माउस के जनक डग एंजेलबर्ट - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
SUNA HAI KI DAARU DAVA HE GAMO KI,DAARU-DAVA AAJMANA PADEGA......ACHCHHI GAZAL ........J.N.MISHRA.
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