दो-चार दिन में लोग नज़र से उतर गए
तेरे शहर में यूं मेरे अरमां बिखर गए
मीनारे-क़ुतुब देख के होता है ये: गुमां
कितने अज़ीम शख़्स जहां से गुज़र गए
ख़ुशियां कभी जो आईं तो मेहमान की तरह
ग़म हैं के: लहू बन के रग़ों में ठहर गए
रोज़ा-नमाज़ न सही आमाल अपने देख
इस मश्क़ से तमाम मुक़द्दर संवर गए
मुझको ख़बर नहीं के: तू किसका ख़ुदा हुआ
ना'ले मेरे गली में तेरी बे-असर गए
होगी ग़ज़ल ज़रूर ज़रा देर सब्र कर
अश'आर दिल से जो हुए कमाल कर गए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अरमां: अभिलाषाएं; मीनारे-क़ुतुब: दिल्ली में स्थित क़ुतुब मीनार; गुमां: आभास; अज़ीम: महान, विराट;
शख़्स: व्यक्ति, व्यक्तित्व; रग़ों में: शिराओं में; आमाल: आचरण; मश्क़: अभ्यास; ना'ले: आर्त्तनाद; अश'आर: शेर (बहुव.) ।
तेरे शहर में यूं मेरे अरमां बिखर गए
मीनारे-क़ुतुब देख के होता है ये: गुमां
कितने अज़ीम शख़्स जहां से गुज़र गए
ख़ुशियां कभी जो आईं तो मेहमान की तरह
ग़म हैं के: लहू बन के रग़ों में ठहर गए
रोज़ा-नमाज़ न सही आमाल अपने देख
इस मश्क़ से तमाम मुक़द्दर संवर गए
मुझको ख़बर नहीं के: तू किसका ख़ुदा हुआ
ना'ले मेरे गली में तेरी बे-असर गए
होगी ग़ज़ल ज़रूर ज़रा देर सब्र कर
अश'आर दिल से जो हुए कमाल कर गए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अरमां: अभिलाषाएं; मीनारे-क़ुतुब: दिल्ली में स्थित क़ुतुब मीनार; गुमां: आभास; अज़ीम: महान, विराट;
शख़्स: व्यक्ति, व्यक्तित्व; रग़ों में: शिराओं में; आमाल: आचरण; मश्क़: अभ्यास; ना'ले: आर्त्तनाद; अश'आर: शेर (बहुव.) ।
बेहतरीन कलाम !!
जवाब देंहटाएं